मंदिरों में एक नहीं बल्कि चार प्रकार की होती है घंटी
जयपुर। हमारे शास्त्रों में घंटी बजाने के कई सारे लाभ बताएं गये हैं जिस कारण से प्रत्येक मंदिर में घंटी अवश्य होती है। इसके साथ ही माना जाता है जहां पर घंटी की आवाज नियमित आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। घंटी की ध्वनी वातावरण की नकारात्मता को दूर करती है।
हम जब भी मंदिर में पूजा के लिए जाते हैं तो सबसे पहले हम मंदिर में प्रवेश करते ही घंटी बजाते हैं। ऐसा हम सभी करते हैं लेकिन क्या कभी हमने ये सोचा की हम ऐसा क्यों करते हैं, इसके पीछें ऐसा क्या कारण जिस कारण से हम मंदिर में प्रवेश करते ही घंटी बजाते हैं। आज हम इस लेख में इसके पीछें के कारण के बारे में बता रहे हैं।
साथ ही शास्त्रों में माना जाता है कि घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों की चेतना जागृत होती है जिसके बाद पूजा और आराधना का शुभ फल मिलता है। इसके साथ ही घंटी की आवाज से मन-मस्तिष्क में जाग्रत भाव लाते हैं, इससे शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है।
शास्त्रों में घंटी के चार प्रकार माने गये हैं, जिन के बारे में हम इस लेख में आपको बता रहे हैं।
- गरुड़ घंटी: गरुड़ घंटी छोटी घंटी होती है, जिसे एक हाथ से आसानी से बजाया जा सकता है, अक्सर पूजा व आरती के समय इसे बजाया जाता है।
- द्वार घंटी: द्वार घंटी जो मंदिरों में लगी मध्यम आकार की घंटी होती है जिसे द्वार पर लटकाया जाता है।
- हाथ घंटी: यह पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
- घंटा: यह बहुत बड़ा होता है और इसे बजाने पर आवाज कई किलोमीटर तक जाती है।