जानिए अपनी सदियों पुरानी विरासत के बारे में
जयपुर। ज्योतिष विषय वेदों के जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह और नक्षत्र की स्थिति और खगोलीय पिण्ड के आधार पर ज्योतिष गणना किया जाता था जिसके आधार पर हम वर्षा के आने का अनुमान लगाते रात में दिशा का सही अनुमान लगाते थे। धीरे धीरे इसका अध्ययन किया जाने लगा और इसे ज्योतिष विषय के रुप मे पढाया जाने लगा। ज्योतिष के आधार पर इसमें गणित भाग के होने से ज्योतिष में सटीक रुप से स्पष्टता आती है। ज्योतिष के बारे में वेदों में भी स्पष्ट गणनाएं दी हुई हैं।
लेकिन आजादी के 72 साल बाद देश की इस पुरानी विरासत को आगे ले जाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया गया। इसके साथ जहा विदेश से लोग इस ओर आकर्षित हो रहें है वहीं हम अपनी इस विरासत को भूलते जा रहें हैं।विघवानों के दवारा ज्योतिष की प्राप्त ण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी ज्यादा बताई जा रही है। लेकिन अपने इस पुरानी विरासत के संरक्षण के लिए हमारे दवारा कोई प्रयास नहीं किये गये।
आज हम इस लेख मे ज्योतिष के बारे मे बता रहें है। प्राचीनकाल में गणित एवं ज्योतिष समानार्थी थे लेकिन समय के साथ ज्योतिष तीन भागों में विभाजित हो गया।
- तन्त्र या सिद्धान्त – इसमें गणित द्वारा ग्रहों की गतियों और नक्षत्रों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
- होरा – इसका सम्बन्ध कुण्डली बनाने से था। इसको भी तीन उपविभाग में बाटा गया। इसमें जातक, यात्रा, विवाह सम्मिलित थी ।
- शाखा – यह विस्तृत अध्ययन का भाग था जिसमें शकुन परीक्षण, लक्षणपरीक्षण एवं भविष्य सूचन का विवरण सम्मिलित था।