रविवार को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तमाम किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच तीनों किसान विधायकों पर हस्ताक्षर कर उन्हें स्वीकृति दे दी। यह विधेयक कोरोना महामारी के संकट के बीच संसद के मानसून सत्र में लाया गया था जिसका विपक्ष सीधा विरोध कर रहा है।
विपक्ष और देश के किसान इस कानून के सीधे खिलाफ नजर आ रहे हैं, उनका कहना है कि यह कानून देश के छोटे किसानों को कारपोरेट कंपनियों का गुलाम बना कर रख देगा और मुझे मात्र कॉरपोरेट कंपनियों के फायदे के लिए है ना कि किसानों के लिए। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब यह तीनों किसान बहुल क्षेत्र हैं और इन तीनों प्रदेशों में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए इस कानून का भीषण विरोध जारी है।
भाजपा के सबसे पुरानी सहयोगी दल जोकि पंजाब से भाजपा के साथ गठबंधन मे थी उसने भी इस कानून का सीधा विरोध करते हुए भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ लिया है। पूर्व केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने भी किसानों का साथ देते हुए और विरोध जताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रविवार को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में इन विधेयकों को लेकर अपनी राय रखी थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये विधेयक आने के बाद अब किसानों को अपनी फल-सब्जियां कहीं पर भी, किसी को भी बेचने की ताकत मिल गई है।
देश में चारों ओर इस कानून का विरोध जारी है और सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वे जनता की और विपक्ष की परेशानियों को सुने और उसका समाधान करें यदि जनता के अंदर कानून को लेकर कोई भ्रम है तो उसको भी दूर करना चाहिए। जनता के विरोध के बावजूद विधेयक के पारित होने के कारण किसानों में बहुत गुस्सा देखने को मिल रहा है।