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ब्रह्म हत्या के दोष से कालभैरव को यहां मिली थी मुक्ति

मार्गशीष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काशी में भैरव बाबा के प्राकटय दिवस के रूप में मनाया जाता हैं काशी में काल भैरव का प्राचीन मंदिर हैं ऐसा माना जाता हैं कि भगवान शिव के रोद्र रूप से प्रकट हुए काल भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष को दूर करने के लिए शिव ने यहां भेजा था। इसके बाद कालभैरव यही स्थापित हो गए।
ब्रह्म हत्या के दोष से कालभैरव को यहां मिली थी मुक्ति

बता दें कि मार्गशीष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काशी में भैरव बाबा के जन्दिन यानी की प्राकटय दिवस के रूप में मनाया जाता हैं काशी में काल भैरव का प्राचीन मंदिर हैं ऐसा माना जाता हैं कि भगवान शिव के रोद्र रूप से प्रकट हुए काल भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष को दूर करने के लिए शिव ने यहां भेजा था।

ब्रह्म हत्या के दोष से कालभैरव को यहां मिली थी मुक्ति

इसके बाद कालभैरव यही स्थापित हो गए। वही वाराणसी के राजा ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ ने कालभैरव को यहां का कोतवाल नियुक्त किया हैं। काल भैरव को ये मंदिर बहुत ही पुराना माना जाता हैं। ऐसा माना गया हैं कि शहर की सुरक्षा कोतवाल कालभैरव के हाथा में हैं।

ब्रह्म हत्या के दोष से कालभैरव को यहां मिली थी मुक्ति

काशी के लोगों की मान्यता हैं कि भैरव बाबा कोतवाल के रूप में लोगो की सुनवाई पर यमराज बाता के आदेश की मुहर लगवाते हैं। उस पर दंड भी निर्धारित करते हैं और मुक्ति दिलवाते हैं। वही हिंदू पुराणों में उल्लेख मिलात हैं कि ब्रह्मा ने शिव की एक मुख से निंदा की थी। इससे नाराज होकर कालभैरव ने ब्रह्मा का मुख अपने नाखून से काट दिया था। कालभैरव का नाखून ब्रह्मा के मुख में चिपका रह गया, जो हट नही रहा था।

ब्रह्म हत्या के दोष से कालभैरव को यहां मिली थी मुक्ति

भैरव ब्रम्हत्या से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु की शरण में गए। उन्होंने कालभैरव को काशी भेजा। काशी पहुंच कर उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिली और उसके बाद वे यही पर स्थापित हो गए। इसका जिक्र हिंदू धर्म पुराणों में मिलता हैं। मार्गशीष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यहां रात में बाबा काल भैरव की सवा लाख बत्ती से महाआरती की जाती हैं। ब्रह्म हत्या के दोष से कालभैरव को यहां मिली थी मुक्ति

मार्गशीष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काशी में भैरव बाबा के प्राकटय दिवस के रूप में मनाया जाता हैं काशी में काल भैरव का प्राचीन मंदिर हैं ऐसा माना जाता हैं कि भगवान शिव के रोद्र रूप से प्रकट हुए काल भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष को दूर करने के लिए शिव ने यहां भेजा था। इसके बाद कालभैरव यही स्थापित हो गए। ब्रह्म हत्या के दोष से कालभैरव को यहां मिली थी मुक्ति

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