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ये जानवर ही क्यों है कालभैरव की सवारी, जानिए

स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं। जिनकी आराधना धन प्राप्ति के लिए की जाती हैं। यह हमेशा ही पाताल में रहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे सोना धरती के गर्भ में होता हैं। इनका प्रिय प्रसाद दूध और मेवा हैं। इनके मंदिरों में मदिरा मास सख्य वर्जित हैं। वही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं।
ये जानवर ही क्यों है कालभैरव की सवारी, जानिए

आज कालभैरव अष्टमी मनाई जा रही हैं काल भैरव भगवान शिव के ही स्वरूप माने जाते हैं। स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं। जिनकी आराधना धन प्राप्ति के लिए की जाती हैं। यह हमेशा ही पाताल में रहते हैं। ठीक वैसे ही जेसे सोना धरती के गर्भ में होता हैं। इनका प्रिय प्रसाद दूध और मेवा हैं। इनके मंदिरों में मदिरा मास सख्य वर्जित माना जाता हैं।

ये जानवर ही क्यों है कालभैरव की सवारी, जानिए

वही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का वक्त मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के बीच का होता हैं इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से होता हैं यही वजह हैं कि कुत्ता इनकी सवारी हैं कुत्ते की गंध लेने की क्षमता अधिक होती है इनके साधना से अष्ट दारिद्रय समाप्त हो जाता हैं।ये जानवर ही क्यों है कालभैरव की सवारी, जानिए

वही जो साधक इनकी आराधना करता हैं उसके जीवन में कभी आ​र्थिक हानि नहीं होती हैं केवल आर्थिक लाभ देखने को मिलता हैं। इनकी साधना में जितना महत्व मंत्र का है उतना ही महत्व यंत्र का भी माना जाता हैं वही स्वर्णाकर्षण भैरव यंत्र स्थापन करने से बहुत सारे लाभ प्राप्त होते हैं। वही सर्वप्रथम रात्रि में 11 बजे स्नान करके उत्तर दिशा में मुख करके साधना में बैठें पीले वस्त्र आसन होना बहुत जरूरी हैं। वही स्फटिक माला और यंत्र को पीले वस्त्र पर रखें और उनका सामान्य पूजन करें। साधना केवल मंगलवार के दिन रात्रि में 11 से 3 बजे के समय में करना शुभ माना जाता हैं।ये जानवर ही क्यों है कालभैरव की सवारी, जानिए

इसमें 11 माला मंत्र जाप करना आवश्यक हैं भोग में मीठे गुड की रोटी चढ़ाने का विधान होता हैं और दूसरे दिन सुबह वो रोटी किसी काले रंग के कुत्ते को खिलाएं। काला कुत्ता ना मिले तो किसी भी कुत्ते को खिला सकते हैं।ये जानवर ही क्यों है कालभैरव की सवारी, जानिए

स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं। जिनकी आराधना धन प्राप्ति के लिए की जाती हैं। यह हमेशा ही पाताल में रहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे सोना धरती के गर्भ में होता हैं। इनका प्रिय प्रसाद दूध और मेवा हैं। इनके मंदिरों में मदिरा मास सख्य वर्जित हैं। वही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। ये जानवर ही क्यों है कालभैरव की सवारी, जानिए

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