झारखंड : रेशम की खेती से महिलाओं में लौट रही है आत्मनिर्भरता की चमक
झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिला तसर के क्षेत्र में फिर से अपनी पहचान बना रहा है। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की परियोजना ने इस जिले में रेशम की खेती को लेकर संभावनाओं का नया द्वार खोला है। डेढ़ से दो महीने की मेहनत में करीब 40 हजार से 50 हजार की कमाई अब तसर की खेती से जुड़कर यहां की महिलाएं कर रही हैं।
पश्चिमी सिंहभूम जिले के करीब 6500 किसानों ने पिछले साल करीब 3 करोड़ कुकून का उत्पाद एंव बिक्री के जरिए 7़54 करोड़ रुपये तक की कमाई कर ली।
झारखंड के आदिवासी इलाकों में तसर की खेती काफी पहले से होती रही है, क्योंकि यहां प्रकृति ने वरदान स्वरुप हरे-भरे पेड़, जंगल एवं उचित जलवायु प्रदान की है। हालांकि तब उत्पादन कम होता था।
एक अधिकारी बताते हैं कि तसर की खेती को स्थापित करने के लिए राज्य में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (एमकेएसपी) के जरिए ग्रामीण महिलाओं को तसर की वैज्ञानिक एवं तकनीकी विधि से जोड़ने की पहल की गई। परियोजना रेशम के तहत उत्पादक समूह के गठन के जरिए इस पहल की जिम्मेदारी पूर्ण रुप से सखी मंडल की सदस्यों को सौप दी गई है।
वर्ष 2017 में शुरू की गई इस योजना में समुदाय को तकनीकी मदद के साथ जरुरी कृषि यंत्र एवं उपकरण भी उत्पादक समूहों को उपलब्ध कराए गए है। इस पहल के जरिए तसर की खेती को बढ़ावा देने हेतु करीब 150 महिलाओं को आजीविका रेशम मित्र के रुप में ‘मास्टर ट्रेनर’ बनाया गया जो अपनी सेवाएं गांव में किसानों की मदद के जरिए दे रही है वहीं समुदाय आधारित संगठन को कुकून बैंक एवं अन्य कार्यों की जिम्मेदारी दी गई है।
ग्रामीण महिलाएं जंगल में मौजूद अर्जुन एवं आसन के पौधों से साल में दो बार वैज्ञानिक तरीके से कीटपालन एवं कुकून उत्पादन कर रहे है।
राज्य में करीब 7,500 परिवारों के साथ तसर व रेशम की वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा दिया गया है। महिलाएं कुकून के उत्पादन के जरिए 35 हजार से 45 हजार रुपये सालाना मात्र 2 महीने की मेहनत से कमा रही है। रेशम की खेती के लिए कोई उपजाउ जमीन भी नहीं चाहिए। जंगल में पहले से मौजूद अर्जुन एवं आसन के पौधो के जरिए कीटपालन कर महिला किसान कर रही है अच्छी कमाई।
हाटगम्हरिया प्रखंड की महिला किसान सरिता पिंगुआ आईएएनएस को बताती हैं, “करीब 1800 रुपये लगाकर सलाना 48 हजार रुपये की आय मैं कर लेती हूं, वो भी सिर्फ कुछ ही महीनों की मेहनत से कुकून तैयार हो जाता है।”
इधर, सरिता बताती है कि रेशम की खेती से हम महिलाओं को डर लगता था इतने दादा लोगों को घाटा हुआ है कि हमलोग नहीं करना चाहते थे लेकिन वैज्ञानिक खेती से हमारी आय बढ़ी है और गांव बदल रहा है।
उत्पादक समूह से जुड़ी महिला तसर किसानों के नेतृत्व में ही बेसिक सीड प्रोडक्शन यूनिट( बीएसपीयू) एवं कमर्शियल सीड प्रोडक्शन यूनिट (सीएसपीयू)का गठन किया गया है। जहां अंडा का हैचरिंग से लेकर कुकून के टेस्टिंग एवं रोग मुक्त लेइंग की जांच होती है।
खूंटपानी के आहबुरू गांव की रहने वाली रानी बताती है कि हमलोग खुद अंडा एवं बीज का भंडारण करते है, माइक्रोस्कोप से टेस्टिंग करते है और रोग मुक्त कुकून का उत्पादन भी करते है जिसकी अच्छी मांग है। अभी हमलोग खेत के मेढ़ पर अर्जुन एवं आसन का पौधा भी लगा रहे है जिससे तसर के उत्पादन को बढ़ा सके। पिछले साल की खेती से मैने करीब 49 हजार रुपये शुद्घ मुनाफा कमाया है।
झारखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत इन परिवारों को प्रशिक्षण एवं अन्य सहयोग मिल रहा है जिससे ये आज आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है।
ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के सीईओ राजीव कुमार बताते है कि आदिवासी परिवार की बहनों ने तसर उत्पादन के जरिए एक मिसाल कायम की है जिसको आगे बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रयासरत है।
ग्रामीण महिलाओं एवं उनके संगठन के जरिए एमकेएसपी परियोजना से जो मॉडल तैयार किया गया है उसे राज्य के और इलाकों में भी बढ़ाया जाएगा जिससे ज्यादा से ज्यादा परिवार तसर की खेती से जुड़े और झारखंड तसर का सर्वाधिक उत्पादन कर सके।
न्यूज सत्रोत आईएएनएस