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मनुष्य के सब विकार हर लेते हैं श्रीकृष्ण

वही स्वामी रामतीर्थ ने कहा था, गोपियों के इससे बढ़ कर क्या सुकर्म होंगे कि कृष्ण ने उनका मक्खन चुराया। धन्य हैं, जिसका सब कुछ चुराया जाए। मन चित्त तक बाकी न रहे। मतलब यह कि वह फालतू की चीजें हर लेता हैं चाहता हैं कि शुद्ध बुद्ध मन से उसे अपनाओ, आत्मसात कर लो। गोपियों का परिष्कार भी इसी भांति हुआ था। पहले तो वंशी बजा कर बेसुध कर दिया, वे भागी चली आई फिर पूछा क्यों आई हो, जाओ लौट जाओ। विमूढ़ सी वे ताकती रह गई मन ही मन समझ गई कि छलिया परीक्षा ले रहा हैं।
 मनुष्य के सब विकार हर लेते हैं श्रीकृष्ण

हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का पर्व बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना जाता हैं, वही सूफी भक्तबुल्ले शाह भी ठगे से रह गए। अपनी बुक्कल में कस कर सीने से लगा रखा था। कब फिसल कर भाग गया, पता ही नहीं चला। किसी से कह न पाएं, फिर भी दुनिया भर में शोर म गया— मेरी बुक्कल दे विच चोर नी, किसनू कूक सुणावां, चोरी चोरी निकल गया ते जग विच पै गया शोर। मनुष्य के सब विकार हर लेते हैं श्रीकृष्ण

बता दें कि बुक्क शब्द संस्कृत का हैं इसका अर्थ है ह्रदय, छाती, तो ह्रदय प्रदेश को किसी वस्त्र से लपेटने को बुक्कल मारना कहते हैं इसकी ओट में कुछ भी छुपा कर रखा जा सकता हैं बुल्ले शाह ने भी अपने ईस्ट को ह्रदय में संजोकर रखा था, पर वह चोरी चोरी निकल गया। संसार में वह तरह तरह के रूप धारण कर सकता हैं जिसने समझने का यत्न किया, उसकी पकड़ में आ गया। वह आवरण में रहता हैं कोई कोई उसे पहचान पाता हैं जिस पर वह दयालु होता हैं, उसका सब कुछ ले जाता हैं। मनुष्य के सब विकार हर लेते हैं श्रीकृष्ण

वही स्वामी रामतीर्थ ने कहा था, गोपियों के इससे बढ़ कर क्या सुकर्म होंगे कि कृष्ण ने उनका मक्खन चुराया। धन्य हैं, जिसका सब कुछ चुराया जाए। मन चित्त तक बाकी न रहे। मतलब यह कि वह फालतू की चीजें हर लेता हैं चाहता हैं कि शुद्ध बुद्ध मन से उसे अपनाओ, आत्मसात कर लो। गोपियों का परिष्कार भी इसी भांति हुआ था। पहले तो वंशी बजा कर बेसुध कर दिया, वे भागी चली आई फिर पूछा क्यों आई हो, जाओ लौट जाओ। विमूढ़ सी वे ताकती रह गई मन ही मन समझ गई कि छलिया परीक्षा ले रहा हैं।  मनुष्य के सब विकार हर लेते हैं श्रीकृष्ण

वही स्वामी रामतीर्थ ने कहा था, गोपियों के इससे बढ़ कर क्या सुकर्म होंगे कि कृष्ण ने उनका मक्खन चुराया। धन्य हैं, जिसका सब कुछ चुराया जाए। मन चित्त तक बाकी न रहे। मतलब यह कि वह फालतू की चीजें हर लेता हैं चाहता हैं कि शुद्ध बुद्ध मन से उसे अपनाओ, आत्मसात कर लो। गोपियों का परिष्कार भी इसी भांति हुआ था। पहले तो वंशी बजा कर बेसुध कर दिया, वे भागी चली आई फिर पूछा क्यों आई हो, जाओ लौट जाओ। विमूढ़ सी वे ताकती रह गई मन ही मन समझ गई कि छलिया परीक्षा ले रहा हैं। मनुष्य के सब विकार हर लेते हैं श्रीकृष्ण

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