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Janaki jayanti 2021: अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव

हिंदू धर्म में व्रत त्योहारों को विशेष माना जाता हैं वही आज यानी 6 मार्च दिन शनिवार को माता सीता का जन्मोत्सव यानी सीता जयंती का त्योहार मनाया जा रहा हैं जैसे श्री हरि विष्णु के अवतार रूप प्रभु श्रीराम की मान्यता मर्यादा और आदर्श के तौर पर हैं ठीक उसी तरह देवी सीता उनकी
Janaki jayanti 2021: अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव

हिंदू धर्म में व्रत त्योहारों को विशेष माना जाता हैं वही आज यानी 6 मार्च दिन शनिवार को माता सीता का जन्मोत्सव यानी सीता जयंती का त्योहार मनाया जा रहा हैं जैसे श्री हरि विष्णु के अवतार रूप प्रभु श्रीराम की मान्यता मर्यादा और आदर्श के तौर पर हैं ठीक उसी तरह देवी सीता उनकी पत्नी बनने से पहले नारी के तौर पर आदर्श स्थापित करती हैंJanaki jayanti 2021: अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव यही कारण है कि सीता माता का जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं। इस दिन व्रत पूजन करने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ति होती है गृहस्थ इस दिन व्रत रखते हैं और महिलाएं सौभाग्य का फल पाती हैं तो आज हम आपको इस व्रत के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।Janaki jayanti 2021: अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव

पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक देवी सीता भूमि से प्रकट हुई थी। इस दिन लोग माता जानकी के लिए व्रत रखते हैं मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम और माता जानकी को विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती हैं साथ ही व्रती को मनोवांछित फलों की भी प्राप्ति होती हैं। Janaki jayanti 2021: अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सववाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार मिथिला राज्य में भीषण अकाल पड़ा कई सालों तक बारिश न होने के कारण प्रजा त्राहि कर उठी। राजा जनक ऋषि मुनियों की शरण में गए और इस आपद का कारण व निवारण पूछा, ऋषियों ने कहा कि आपदा का कारण कुछ भी हो, लेकिन इसका निवारण यह हैं कि महाराज जनक खुद खेत में हल चलाएं तो इंद्रदेव की कृपा जरूर होगी। राजा जनक ने तय तिथि पर खेत में हल चलाने पहुंचे।Janaki jayanti 2021: अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव भूमि कर्षण का कार्य हो रहा था और सूर्य नारायण अब सीधे सिर के ऊपर प्रचंड ताप बरसाने लगे थे। पसीने में लथपथ राजा बिना विचलित हुए आगे बढ़ रहे थे। वह रुकते भी नहीं अगर हल की नोंक जमीन में धंसी किसी वस्तु से टकराकर अड़ नहीं जाती। हल आगे नहीं बढ़ा तो राजा जनक वहां खुदाई का आदशे दिया। खुदाई में उन्हें एक कलश प्राप्त हुआ। जिसमें एक कन्या थी। राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री मानकर उनका पालन पोषण किया। उस समय हल की नोंक को सीत और उससे धरती पर खिंची रेखा को सीता कहते थे। इसलिए पुत्री का नाम सीता रखा गया।Janaki jayanti 2021: अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव

 

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