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पिछले दो साल में 6300 लोगों पर दर्ज हुआ राजद्रोह का केस, लेकिन सिर्फ दो फीसदी पर ही हो पाए आरोप तय

परिवर्तन संसार का नियम है, इतना कठोर नियम कि इसके किसी का बस नहीं चलता। शायद यही नियम अब फैज कि कालजेयी कविता पर भी चल गया है। हालांकि इसमें दोष समय का नहीं बल्कि सत्ता के सर्कस में हंटर बन बैठी सरकार का है,जो विरोध में उठने वाली हर आवाज को दबाने को आतुर
पिछले दो साल में 6300 लोगों पर दर्ज हुआ राजद्रोह का केस, लेकिन सिर्फ दो फीसदी पर ही हो पाए आरोप तय

परिवर्तन संसार का नियम है, इतना कठोर नियम कि इसके किसी का बस नहीं चलता। शायद यही नियम अब फैज कि कालजेयी कविता पर भी चल गया है। हालांकि इसमें दोष समय का नहीं बल्कि सत्ता के सर्कस में हंटर बन बैठी सरकार का है,जो विरोध में उठने वाली हर आवाज को दबाने को आतुर है।

मामला वैसे तो विवादास्पद है,मगर सोचने को मजबूर करता है। पर्यावरण कार्यकरता दिशा रवि का नाम भी अब उस फेहरिस्त में आ गया है,जिसके जरिए सरकार बीते कुछ सालो से लगातार उन लोगों को निशाना बना रही है जो उसके खिलाफ मुंह खोलने कि हिमाकत करते है।पिछले दो साल में 6300 लोगों पर दर्ज हुआ राजद्रोह का केस, लेकिन सिर्फ दो फीसदी पर ही हो पाए आरोप तय

ये फेहरिस्त है राजद्रोह कि जिसका दुरूपयोग करने के आरोप केंद्र पर लगातार लग रहे है। एनसीआरबी के डाटा के अनुसार साल 2014-2016 के बीच करीब 179 लोगों कि गिरफ्तारी इस कानून के तहत की गई,साल 2019 में भी राजद्रोह का आरोप 96 लोगों पर लगाया गया हालांकि साबित इनमे से केवल 4 ही हो पाए।

वहीं साल 2020 कि बात करे तो बीते साल तो सरकार में जैसे राजद्रोह लगाने की होड ही मच गई। सीएए कानून का विऱोध करने वाले करीब 3000 लोगों पर सरकार ने राजद्रोह के आरोप लगाए।पिछले दो साल में 6300 लोगों पर दर्ज हुआ राजद्रोह का केस, लेकिन सिर्फ दो फीसदी पर ही हो पाए आरोप तय

क्या होता है राजद्रोह का आरोप

राजद्रोह कानून के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति सरकार विरोधी सामग्री लिखता,बोलता या समर्थन करता है,या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करते हुए संविधान को नीचा दिखाने कि कोशिश करता है,अथवा अपने लिखित अथवा मौखिक शब्दों, अथवा चिन्हों से या फिर प्रतयक्ष अथवा अप्रतयक्ष रूप से नफरत फैलाता है अथवा असंतोष जारी करता है, तो उसे आजीवन कारावास अथवा तीन साल कि सजा का प्रावधान है।

सुप्रिम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता इस मामले पर राय रखते हुए कहते है कि बीते 2-4 सालों से राजद्रोह के कानून का बहुत दुरुपयोग किया जा रहा है दिशा पर धारा 153ए भी लगाया गया है, जिसका अर् होता है, दो समुदायों के बीच विवाद करवाने की मंशा,जो कि टूलकिट में मुझे तो कहीं नहीं दिखी।पिछले दो साल में 6300 लोगों पर दर्ज हुआ राजद्रोह का केस, लेकिन सिर्फ दो फीसदी पर ही हो पाए आरोप तय

क्यूं लग रहे है दुरुपयोग के आरोप

2014 से लेकर अब तक हजारों कि संख्या में लोगों पर राजद्रोह लगाया जा चुका है, जबकि अब तक केवल 2 फीसदी लोगों पर ही ये साबित हो पाया है। ऐसे में सरकार पर इस के दुरुपयोग आरोप लग रहे है।

राजद्रोह के वो मामले जो सुर्खियों में आए

  • शशि थरूर समेत 6 पत्रकारो पर 26 जनवरी को हुई हिंसा पर ट्वीट करने को लेकर राजद्रोह दर्ज किया था।
  • संजय सिंह – साल 2020 में आप नेता संजय सिंह पर उनके एक बयान को लेकर उनपर  राजद्रोह लगाया था।
  • विनोद दुआ – बीते साल यु-ट्युब पर फर्जी खबरे चलाने का आरोप लगा कर राजद्रोह लगाया था।
  • कन्हैया कुमार – साल 2016 में जेएनयू के छात्रों पर देश-विरोधी नारे लगाने का आरोप था। राजद्रोह दर्ज किया गया।पिछले दो साल में 6300 लोगों पर दर्ज हुआ राजद्रोह का केस, लेकिन सिर्फ दो फीसदी पर ही हो पाए आरोप तय

सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है

आज़ाद भारत का पहला राजद्रोह का  मामला साल 1953 में हुआ था.बिहार के कम्युनिस्ट पार्टी  के  कार्यकर्ता केदारनाथ सिंह पर हुआ। तब सुप्रीम कोर्ट ने सर्कार की निंदा करते हुए कहा था की किसी भी परिस्तिथि में सरकार की आलोचना को राजद्रोह नहीं माना जा सकता। भले ही शब्द कठोर कहे गए हो लेकिन यदि वो हिंसा नहीं भड़काते है तो वो राजद्रोह नहीं माना जा सकता।

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