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श्रावण में करें श्री शिव स्तुति ‘पशूनां पतिं पापनाशं परेशं ‘का जाप, हर मनोकामना होगी पूर्ण

जयपुर । श्रावण मास चल रहा है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। तथा इस महीने में भगवान शिव जी की अराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में शिव स्तुति पशूनां पतिं पापनाशं परेशं लेकर आए हैं। इसके
श्रावण में करें श्री शिव स्तुति ‘पशूनां पतिं पापनाशं परेशं ‘का जाप,  हर मनोकामना होगी पूर्ण

जयपुर । श्रावण मास चल रहा है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। तथा इस महीने में भगवान शिव जी की अराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में शिव स्तुति पशूनां पतिं पापनाशं परेशं लेकर आए हैं। इसके पाठ से आप भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं। तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस लिए श्रावन मास में हर रोज नित्य कर्म से निवृत्त होकर शिवलिंग  का अभिषेक करने के बाद भगवान शिव की विधि विधान से पूजा कर शिव स्तूतिका पाठ करने से लाभ मिलेगा।
श्रावण में करें श्री शिव स्तुति ‘पशूनां पतिं पापनाशं परेशं ‘का जाप,  हर मनोकामना होगी पूर्ण
शिव स्तुति मंत्र

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।
श्रावण में करें श्री शिव स्तुति ‘पशूनां पतिं पापनाशं परेशं ‘का जाप,  हर मनोकामना होगी पूर्ण
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।
श्रावण में करें श्री शिव स्तुति ‘पशूनां पतिं पापनाशं परेशं ‘का जाप,  हर मनोकामना होगी पूर्ण
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।
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