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नवजात शिशु के लिए शहद का सेवन हानिकारक, इन बातों का ध्यान रखकर करें शिशु की देखभाल

जयपुर।नवजात शिशु की देखभाल करना बेहद ही कठिन काम होता है क्योंकि छोटी सी लापरवाही भी शिशु के लिए घातक साबित हो सकती है।छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर होती है जिसके कारण बच्चों में वायरल संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।इसलिए 6 माह से कम उम्र के छोटे बच्चों को स्वस्थ और
नवजात शिशु के लिए शहद का सेवन हानिकारक, इन बातों का ध्यान रखकर करें शिशु की देखभाल

जयपुर।नवजात शिशु की देखभाल करना बेहद ही कठिन काम होता है क्योंकि छोटी सी लापरवाही भी शिशु के लिए घातक साबित हो सकती है।छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर होती है जिसके कारण बच्चों में वायरल संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।इसलिए 6 माह से कम उम्र के छोटे बच्चों को स्वस्थ और बीमारियों से दूर रखने के लिए मां के दूध का सेवन करवाना आवश्यक होता है।

नवजात शिशु के लिए शहद का सेवन हानिकारक, इन बातों का ध्यान रखकर करें शिशु की देखभालवहीं हमारे देश में नवजात शिशु को शहद का सेवन करवाने का रिवाज है।हालांकि शहद हमारी सेहत के लिए लाभदायक होता है, लेकिन छोटे बच्चों को शहद खिलाना उनकी सेहत के लिए हानिकारक होता है।शहद में क्लोस्टिडयम बोटुलिनम नामक बैक्ट्रीरिया पाया जाता है, जो कि नवजात शिशु के लिए काफी ख़तरनाक होता है।

नवजात शिशु के लिए शहद का सेवन हानिकारक, इन बातों का ध्यान रखकर करें शिशु की देखभालइस बैक्ट्रीरिया के कारण छोटे बच्चे को फूड पॉइज़निंग की समस्या हो सकती है।शहद का सेवन करवाने से बच्चों में कमज़ोरी, थकान, भूख ना लगना, कब्ज़ और सुस्ती जैसी परेशानिया हो सकती है।इसके अलावा शहद का सेवन करने से बच्चों में चिड़चिड़ापन और सांस लेने में तकलीफ की परेशानी भी दिखाई देती है।

नवजात शिशु के लिए शहद का सेवन हानिकारक, इन बातों का ध्यान रखकर करें शिशु की देखभालनवजात शिशु में बोटुलिज़म के लक्षण की शुरुआत कब्ज़ से होती है।इससे बच्चों में पेट संबंधी परेशानिया बढ़ सकती है।इसलिए दो साल से कम उम्र के बच्चों का शहद का सेवन नही करवाना चाहिए।यदि आपके बच्चे में बोटुलिज़्म की समस्या का कोई लक्षण है या फिर नवजात शिशु को हाल ही में शहद का सेवन करवाया गया है,

नवजात शिशु के लिए शहद का सेवन हानिकारक, इन बातों का ध्यान रखकर करें शिशु की देखभालतो आपको तुरंत डॉक्टर से शिशु की जांच करवाना आवश्यक है।इससे शिशु को समय पर इलाज मिल सकता है और शिशु को बोटुलिज्म की परेशानी से बचाया जा सकता है।

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