जानिए होलाष्टक लगने के पीछे का कारण
आपको बता दें कि रंगों का महापर्व होली हिंदू धर्म का मुख्य पव्र होता हैं होली से पहले अगर आप शुभ कार्य आदि की योजना बना रहे हैं तो यह महीना बहुत ही महत्वपूर्ण हैं इस माह में शुभ कार्यों को जरूर कर लेना चाहिए। वही फरवरी का आखिरी सहालग 28 फरवरी को होगा। वही तीन मार्च से होलाष्टक की शुरुवात होने जा रही हैं होली से पहले ये आठ दिनों का समय अशुभ माना जाता हैं इसलिए इस अवधि् में शुभ कार्य करने की मनाही होती हैं वही नौ मार्च को गोधूलि वेला में होली दहन होगा। दस मार्च को धुलैड़ी का पर्व मनाया जाएगा। तो आज हम आपको होलाष्टक के बारे में बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।
ज्योतिष के मुताबिक होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता हैं इस कारण से इन आठों दिनों में मानव मस्तिष्क कई तरह के विकारों, शंकाओं और दुविधाओं। आदि से घिरा हुआ रहता हैं जिसकी वजह से शुरू किए गए कार्य के बनने के बजाय बिगड़ने की संभावना अधिक हो जाती हैं वही चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को इन आठों ग्रहों की नकारात्मक शक्तियों के कमजोर होने की खुशी में लोग अबीर गुलाल आदि लगाकर अपनी खुशियां व्यक्त करते हैं जिसे रंगो का पर्व होली कहा जाता हैं। बता दें कि 28 फरवरी तक विवाह स्थलों पर अधिक शादियां होंगी। 14 मार्च को सूर्य के गूरु बृहस्पति की राशि मीन में प्रवेश करने से फिस से एक महीने तक शहनाइयों की गूंज थम जाएगी।