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Rabindranath Tagore:आज ही के दिन हुआ था नोबल पुरूस्कार विजेता गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म

आज का दिन भारत की दृष्टि या फिर यूँ कहे की विश्व की दृष्टि से भी बहुत अधिक महहतव्पूर्ण है। आज के दिन इस दुनिया को एक महान दार्शनिक,कवी,लेखक और एक तरक्की पसंद शख्स मिला था। आज शांति निकेतन के संस्थापक गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्मदिवस है। भारतीय इतिहास के भद्रलोक में शामिल रवींद्रनाथ टैगोर
Rabindranath Tagore:आज ही के दिन हुआ था नोबल पुरूस्कार विजेता गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म

आज का दिन भारत की दृष्टि या फिर यूँ कहे की विश्व की दृष्टि से भी बहुत अधिक महहतव्पूर्ण है। आज के दिन इस दुनिया को एक महान दार्शनिक,कवी,लेखक और एक तरक्की पसंद शख्स मिला था। आज शांति निकेतन के संस्थापक गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्मदिवस है। भारतीय इतिहास के भद्रलोक में शामिल रवींद्रनाथ टैगोर की आज 160 वीं जयंती है। रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोरासांको ठाकुरबाड़ी में देवेंद्रनाथ टैगोर और सरदा देवी के घर हुआ था।Gurudev Rabindranath Tagore : A Person Who Gave Life To ...

उनकी जयंती बोइशाख के बंगाली महीने के 25 वें दिन पड़ती है और इसे लोकप्रिय रूप से “पचीशे बोइशाख” कहा जाता है। इस दिन विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और कार्यक्रम जैसे कविता, नृत्य और नाटक किये जाते है। टैगोर भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक हैं। बंगाली और अंग्रेजी साहित्य में उनका योगदान बेजोड़ है और उन्हें बार्ड ऑफ़ बंगाल के नाम से भी जाना जाता है।Rabindranath Tagore 77th Death Anniversary: 5 Best Love ...

बंगाल को आज भी साहित्य की दृष्टि से काफी समृद्ध राज्य मन जाता है। और इसके पीछे की मूल वजह गुरुदेव जैसी अनेको शख्सियतों का होना ही है। गुरुदेव ने उस दौर में तरक्की पसंद होने का मार्ग चुना जब न तो शिक्षा लोगो के बीच में बहुत अधिक हुआ करती थी,और शिक्षा होने के बावजूद लोग समाज की बेड़ियों को पार कर पाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे।10 inspiring life lessons from Gurudev Rabindranath Tagore ...

ये तो हर किसी को मालूम है की देश का राष्ट्रगान गुरुदेव द्वारा रचा गया है,ये बात भी कई लोग जानते है की बांग्लादेश का राष्ट्रगान अमार सोना बांग्ला भी गुरुदेव ने ही लिखा था। लेकिन ये शायद कम ही जानते होंगे की श्री लंका का राष्ट्र गांड भी गुरुदेव की ही रचना है। साल 1913 में नोबल पुरस्कार पाने वाले गुरुदेव की ही कविता को श्रीलंका की सिन्हला भाषा में परिवर्तित किया गया और उनका राष्ट्रगान बना। ये इस बात का एकदम सटीक उदहारण है की कला की न कोई सरहद होती है न ही कोई पहचान। कला हमेशा कला होती है। इसी मौके पर एक कविता आप सभी के लिए छोड़ जाते है,जो की संभवतः सदी की सबसे अधिक परवर्क कविता है और लोकतंत्र की अहमियत को भी बताती हैRabindranath Tagore Jayanti 2020: Ten lesser-known facts ...

ये कविता वैसे तो बांग्ला में लिखी गयी है लेकिन इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है,और ये तब भी उतनी ही खूबसूरत लगती है

Where the mind is without fear and the head is held high

Where knowledge is free

Where the world has not been broken up into fragments

By narrow domestic walls

Where words come out from the depth of truth

Where tireless striving stretches its arms towards perfection

Where the clear stream of reason has not lost its way

Into the dreary desert sand of dead habit

Where the mind is led forward by thee

Into ever-widening thought and action

Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.Where the mind is without fear

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