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जेनेरिक दवाइयों की हकीकत क्या है आखिर?

जयपुर। हाल ही में सरकार ने चिकित्सकों को एक आदेश जारी करते हुए कहा था कि जनहित को देखते हुए वह जेनेरिक दवाएं लिखना अनिवार्य करे। साथ ही हर मेडिकल स्टोर पर जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जाएं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो अगर डॉक्टर अपने मरीजों को जेनेरिक दवाएं लिखते हैं तो
जेनेरिक दवाइयों की हकीकत क्या है आखिर?

जयपुर। हाल ही में सरकार ने चिकित्सकों को एक आदेश जारी करते हुए कहा था कि जनहित को देखते हुए वह जेनेरिक दवाएं लिखना अनिवार्य करे। साथ ही हर मेडिकल स्टोर पर जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जाएं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो अगर डॉक्टर अपने मरीजों को जेनेरिक दवाएं लिखते हैं तो इससे स्वास्थ्य खर्च में भारी कटौती की जा सकेगी।जेनेरिक दवाइयों की हकीकत क्या है आखिर?

हम आपको बता दे कि वर्तमान में जेनेरिक दवाओं की खपत कुल दवा बाजार की तुलना में केवल 10 प्रतिशत तक ही है। इसका मुख्य कारण यही है कि मुनाफे, कमीशन और उपहार के लालच में मेडिकल स्टोर्स और डॉक्टर आपस में सांठगांठ कर लेते हैं। तभी तो आम उपभोक्ता तक ये दवाइयां पहुंच ही नहीं पाती है। गौरतलब है कि ब्रांडेड दवाओं के दाम आसमान को छूते हैं, ऐसे में एक गरीब आदमी के लिए जेनेरिक दवा किसी फरिश्ते से कम नहीं होती हैं।जेनेरिक दवाइयों की हकीकत क्या है आखिर?

खास बात यह है कि जेनेरिक दवा में ठीक वही निर्माण सामग्री होती हैं जो एक ब्रांडेड महंगी दवा में होती हैं। इतना ही नहीं जेनेरिक दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानदंडों के अनुरूप ही होती हैं। डॉक्टर आपको जो दवा लिखकर देता है उसी साल्ट की जेनेरिक दवा आपको बहुत कम कीमत में मिल सकती है। महंगी दवा और उसी साल्ट की जेनेरिक दवा की कीमतों में पांच से दस गुना तक का अंतर आ जाता है। कई बार यह अंतर बहुत ज्यादा भी होता है।जेनेरिक दवाइयों की हकीकत क्या है आखिर?

जेनेरिक दवाओं के सस्ती होने की यही वजह है कि इन्हें बनाने वाली कंपनियों को अलग से शोध और विकास के लिए प्रयोगशाला बनाने की जरुरत नही पड़ती है। साथ ही जेनेरिक दवा निर्माताओं के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। इन सभी कारणों को देखते हुए दवाओं के दाम काफी कम हो जाते हैं। साथ ही जेनरिक दवा बनाने वाली कम्पनियाँ इन दवाओं का विज्ञापन भी नहीं करती है जिससे भी य़ह सस्ती हो जाती है।

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