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धन लाभ के लिए गुरुवार को जरुर करें दारिद्रयदहन स्तोत्रम्‌ का पाठ

जयपुर । हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार गुरुवार भगवान विष्णु को समर्पित होता हैं। तथा गुरुवार को भगवान विष्णु तथा देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष रुप से व्रत रहकर विधि विधान से पूजा करना चाहिए। इस लिए आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में भगवान विष्णु तथा देवी मां
धन लाभ के लिए गुरुवार को जरुर करें दारिद्रयदहन स्तोत्रम्‌ का पाठ

जयपुर । हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार गुरुवार भगवान विष्णु को समर्पित होता हैं। तथा गुरुवार को भगवान विष्णु तथा देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष रुप से व्रत रहकर विधि विधान से पूजा करना चाहिए। इस लिए आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में  भगवान विष्णु तथा देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए दारिद्रयदहन स्तोत्रम्‌ लेकर आए हैं।
धन लाभ के लिए गुरुवार को जरुर करें दारिद्रयदहन स्तोत्रम्‌ का पाठ
दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ :

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय
दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥दारिद्रय. ॥2॥

धन लाभ के लिए गुरुवार को जरुर करें दारिद्रयदहन स्तोत्रम्‌ का पाठ
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥ दारिद्रय. ॥3॥
चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥ दारिद्रय. ॥4॥

धन लाभ के लिए गुरुवार को जरुर करें दारिद्रयदहन स्तोत्रम्‌ का पाठ
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥दारिद्रय. ॥5॥

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥दारिद्रय. ॥6॥
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥ दारिद्रय. ॥7॥
धन लाभ के लिए गुरुवार को जरुर करें दारिद्रयदहन स्तोत्रम्‌ का पाठ
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥ दारिद्रय. ॥8॥
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥9॥

ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्टा द्रष्टेषु येषु
हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि
येन नान्य कश्चिन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि।
ॐ नमो मणिभद्रे। जयविजयपराजिते।
भद्रे लभ्यं कुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो योन: प्रचोदयात्।
सर्व विघ्नं शान्तं कुरु कुरु स्वाहा।।

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