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कान और जीभ से अँधे लोगों को मिलेगी आँखें

जयपुर। अंधे लोगों की आँखे उनकी छड़ी और उनके कान होते है। आपको बता दे कि उसके कान उसे अपने चारो तरफ का एक 360 डिग्री व्यू देखाते हैं, जो उसे रास्ता ढूंढने में मदद करता है। जानकारी दे दे कि यह तकनीक इकोलोकेशन कहलाती है। बता दे कि चमगादड़ या व्हेल्स इसी तकनीक को
कान और जीभ से अँधे लोगों को मिलेगी आँखें

जयपुर। अंधे लोगों की आँखे उनकी छड़ी और उनके कान होते है। आपको बता दे कि उसके कान उसे अपने चारो तरफ का एक 360 डिग्री व्यू देखाते हैं, जो उसे रास्ता ढूंढने में मदद करता है। जानकारी दे दे कि यह तकनीक इकोलोकेशन कहलाती है। बता दे कि चमगादड़ या व्हेल्स इसी तकनीक को अपनाकर अपना मार्ग खोजते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से अंधे व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाएं संपन्न कर सकते हैं। बिना आँखों के वो सब काम कर सकते है।कान और जीभ से अँधे लोगों को मिलेगी आँखें

जानकारी दे दे कि डेनियल किश इस प्रक्रिया में सबसे पहले उस ऑब्जेक्ट की पहचान करने के लिए अपनी जीभ से एक क्षणिक और तेज क्लिक ध्वनि उत्पन्न करता है और ये ध्‍वनि तरंगें ऑब्जेक्ट से टकराकर उसी दर से वापस कान में आ जाती है तो इस तरह वह चीजों को डिटेक्ट कर पाता है। आपको बता दे कि डेनियल किश की आँखों की रोशनी जन्म के समय ही रेटिनल कैंसर की वज़ह से चली गई थी। उसके बाद उन्होंने अपने कान को ही अपनी आँख बना लिया। वैसे तो कान को सुनने के लिये प्रयोग करते हैं,कान और जीभ से अँधे लोगों को मिलेगी आँखें

परंतु किश के मामले में उसने इसे अपने आस-पास की चीजों से टकराकर आने वाले इको ध्वनियों को महसूस करने के लिये तैयार कर लिया है और आपने आपको इतना तैयार किया है कि 53 कि उम्र में किश ह्यूमन इकोलोकेशन विधा में पारंगत हो चुका है। किश बताते है कि इकोलोकेशन आपको उस वस्तु के घनत्व और बनावट के बारे में भी सूचना उपलब्ध करवाता है बता दे कि वह एक पेड़, कार तथा लकड़ी के डिब्बे में अंतर पता कर पाते है जो डेनियल किश इस तकनीक को ‘फ़्लैशसोनार’ कहते है।कान और जीभ से अँधे लोगों को मिलेगी आँखें

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