Kumbh Mela:कुम्भ के आयोजन पर प्रतिबंध लगाने के चलते हुई त्रिवेंद्र सिंह रावत की बर्खस्तगी
क्या देश में कोरोना के बीच हुआ कुम्भ रोका जा सकता था। क्या इसको लेकर उत्तराखंड सरकार में ऐसी कोई चर्चा हुई थी। खबरे तो खैर ऐसी है की उत्तराखंड में होने जा रहे कुम्भ के मेले को लेकर ऐसी योजना बनाई गयी थी। और इसी के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था। द क्विंट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और हरिद्वार महाकुंभ से जुड़े अधिकारियो ने द कारवां के साथ ये बात साझा की है।
बीजेपी नेताओं ने इस बात में बताया कि कुंभ मेला राजनीतिक और आर्थिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था और इस त्योहार को न मनाने से करोड़ों का नुकसान होता था और देश में कई लोगों की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचती। इसी वजह से राज्य के नेता ने जब उत्सव की भव्यता को सीमित करने वाले COVID प्रतिबंध लगाए, तो उन्हें उनके पद से बेदखल कर दिया गया।
14 जनवरी से 27 अप्रैल के बीच कुम्भ में पाप धोने के लिए 91 लाख से भी अधिक तीर्थयात्री हरिद्वार आए। 12 अप्रैल को हरिद्वार में 35 लाख और 14 अप्रैल को 13.51 लाख से अधिक लोग एकत्रित हुए थे। कोरोना की बातकरे तो 31 मार्च से 24 अप्रैल के बीच कुंभ के आयोजन के दौरान उत्तराखंड ने COVID-19 मामलों में 1,800 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
अब इसे लोग माने या न माने लेकिन कुम्भ ने कोरोना का उत्तराखंड में भीषण तांडव किया। कुम्भ शुरू होनेके बाद से राज्य ने केवल एक महीने में 1.3 लाख COVID-19 मामलों को दर्ज किया। उत्तराखंड की आबादी बहुत ज्यादा नहींहै,लेकिन इतने सारे कोरोना केस आना दर्शाता है की कारण क्या रहा है।
कोरोना के आंकड़े सामने होते हुए भी वर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने लगातार यह मानने से इनकार किया है की कुंभ एक सुपर-स्प्रेडर कार्यक्रम था। बहरहाल इस आर्टिकल समाप्त करने से पहले जूना अखाड़े के एक सदस्य का बयान पढ़ते जाइये। जूना अखाड़े के प्रवक्ता नारायण गिरी का द कारवां से कहना है “जो लोग धर्म में विश्वास नहीं करते हैं, वे COVID -19 का बहाना देते हैं और ये लोग कम्युनिस्ट मानसिकता रखते हैं। वे कुंभ मेले में बाधा डालना चाहते थे। ”
तो बोलो हर हर गंगे
हर हर महादेव