Samachar Nama
×

यह पद्धति भी करती है मदद मानसून का अनुमान लगाने में

एक ताजा अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि गुफा में छत टपकने से बने चूने—पत्थरों के ढेर से भी मानसून का अनुमान लगाया जा सकता है। इस पर अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा 50 वर्षों तक गहन अध्ययन किया है। इसी के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस बात को स्वीकार किया है।
यह पद्धति भी करती है मदद मानसून का अनुमान लगाने में

जयपुर। जब दुनिया में मानव शिक्षित नहीं हुआ था तब मनुष्य मानसून का अनुमान कई प्रकार की स्थितियों का पता लगाकर लगा लेता था। जो कि उनका अनुमान सच होता था।

यह पद्धति भी करती है मदद मानसून का अनुमान लगाने में

हाल ही हुए एक अध्ययन से वैज्ञानिक भी ऐसे ही एक पुरानी पद्धति का इस्तेमाल मानसून की स्थिति को जानने के लिए किया है। इस पद्धति के आधार पर वैज्ञानिक भी मान गए कि वाकय में ऐसे भी मानसून का अनुमान लगाया जा सकता है। यह पद्धति है मेघालय की एक गुफा के भीतर जलवायु के बदलाव से बने चुने—पत्थर के ढेर से है।

यह पद्धति भी करती है मदद मानसून का अनुमान लगाने में

वैज्ञानिकों का कहना है भारत में गुफा के छत के से फर्श पे जमा हुए चुना—पत्थर के स्तंभ की तलछटी से देश में आगामी मानसून में आने वाला,सूखा,बाढ़ आदि के बारे में बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है। अमेरिका में वंडेरबिल्ट यूनिवर्सिटी के अनुसांधानकर्ताओं ने मेघालय की माव्मलू गुफा के भीतर चूने—पत्थर का अध्ययन पीछले 50 वर्षों से कर रही है। और इन्होंने इससे मानसून का अनुमान लगाना अदृभुद बताया है।

यह पद्धति भी करती है मदद मानसून का अनुमान लगाने में

इन चूने—पत्थर के ढेर से इस इलाके में पीछले कुछ हजार वर्षों से भारत में सुखे का संकेत देता है। मेघालय को दुनिया में सबसे वर्षों वाले क्षेत्रों में शामिल है। यहां इसका अध्ययन भी भारत के अलावा भारी मानसूनी क्षेत्रों के लिए कारगार साबित हो सकता है। और पर्यावरण में हो रहें परिवर्तन को भी बताता है।

यह पद्धति भी करती है मदद मानसून का अनुमान लगाने में

वंडेरबिल्ट यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र ऐली रॉने ने बताया कि गुफा के भीतर हवा और जल के प्रवाह से शुष्क मौसम में चूने—पत्थर के बढ़ने में मदद मिलती है। इससे अंदर की परिस्थितियों का पता लगाया जाना आसान होता है।

एक ताजा अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि गुफा में छत टपकने से बने चूने—पत्थरों के ढेर से भी मानसून का अनुमान लगाया जा सकता है। इस पर अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा 50 वर्षों तक गहन अध्ययन किया है। इसी के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस बात को स्वीकार किया है। यह पद्धति भी करती है मदद मानसून का अनुमान लगाने में

Share this story