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Corona:डॉक्टर को नहीं मिला अपने ही अस्पताल में बेड, फूटा गुस्सा

कोरोना के मरीज देश में रिकॉर्ड संख्या में बढ़ रहे है। आलम ये है की अस्पताल में अधिकतर समय मरीजों को बेड नहीं मिल पाता है। बेड मिल भी जाता है तो ऑक्सीजन और कोरोना के उपचार में काम आने वाली दवा वहां पर कम पड़ जाती है। लेकिन फिर भी देश का महान सिस्टम
Corona:डॉक्टर को नहीं मिला अपने ही अस्पताल में बेड, फूटा गुस्सा

कोरोना के मरीज देश में रिकॉर्ड संख्या में बढ़ रहे है। आलम ये है की अस्पताल में अधिकतर समय मरीजों को बेड नहीं मिल पाता है। बेड मिल भी जाता है तो ऑक्सीजन और कोरोना के उपचार में काम आने वाली दवा वहां पर कम पड़ जाती है। लेकिन फिर भी देश का महान सिस्टम VIP कल्चर से पीछे नहीं हटता। मौजूदा समय में भी उस मरीज को प्राथमिकता हर हाल में मिलतीहै जो “माननीय” के ख़ास होते है, और इस वजहसे हर बार आम जन को परेशान होना पड़ता है। दिल्ली में भी एक ऐसा मामला सामने आया। यहाँ तो एक डॉक्टर को उसके खुद के अस्पताल में ही अपने परिजन के लिए बेड की व्यवस्था नहीं मिल पायी।Corona:डॉक्टर को नहीं मिला अपने ही अस्पताल में बेड, फूटा गुस्सा

दैनिक भास्कर से गोपनीयता की शर्त पर बताते हुए, एक डॉक्टर ने अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा,” मैं दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पताल में कार्यरत हूँ। मेरी माँ 11 अप्रैल को कोरोना से संक्रमित हो गयी। उनके ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिर रहा था। लेकिन जब मैं अपने ही अस्पताल में उन्हें भर्ती करना चाहा तो  दोपहर 12:30 से 4 बजे तक मैं वहां पर भटकता रहा। पागलो की तरह बेड तलाशने पर भी बेड नहीं मिला, फिर एक दोस्त ने फ़ोन पर कहा की निजी अस्पताल का रुख कर लो, इसके बाद उनका निजी अस्पताल में दाखिला कराया।Corona:डॉक्टर को नहीं मिला अपने ही अस्पताल में बेड, फूटा गुस्सा

डॉक्टर ने आगे कहा, माँ के लिए मैं अपने ही अस्पताल में बेड नहीं तलाश पाया। इसी अस्पताल में विधायक के लिए एक सिफारिश पर इनके रिश्तेदारों को बेड मिल जाते है। कई मामले तो ऐसे भी है,जब लोगो को घर में आइसोलेट हो जाना चाहिए था, लेकिन वे अस्पताल में ही आकर एडमिट हुए। ऐसा ये देशमे पहला मामला नहीं है, बल्कि और भी ऐसे कई मामले है, लेकिन डॉक्टर अपनी जॉब के खातिर इस पर बोलने से बचते है।

अस्पताल में नेताओ के इसी बेहूदा दखल पर नाराज होते हुए FORDA ने केंद्र को खत लिखा है। इसमें उसने लिखा है की, ये सालो से देखा जा रहा है की नेता स्वास्थ्य सेवाओं में गैर जरुरी दखल देते है। इससे सेवाओं पर असर पड़ता है। किसी भी तरह की असामयिक मृत्यु या घटना घट जाने के बाद नेता अपने दौरे में अस्पताल की लापरवाही बता कर चले जाते है। इससे डॉक्टरों व स्टाफ को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ता है।Corona:डॉक्टर को नहीं मिला अपने ही अस्पताल में बेड, फूटा गुस्सा

हम अपने कर्तव्यों का पालन करते है और बिना किसी भेदभाव के लोगो के जीवन बचाने का प्रयास करते है। हम मौजूदा संस्धानों में पूरी कोशिशे करतेहै की लोगो को पूरा इलाज दे सके। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर और काम के बोझ से दबे हुए स्वस्थ्य कर्मचारियों के हाल में कोई सुधार नहीं हुआ है। एमपी के एक घटना में एक जनप्रतिनिधि ने एक वरिष्ठ नेता से बदसलूकी की और उसे फिर इस्तीफ़ा भी देना पड़ा। अतः हमारा आपसे अनुरोध है की जान प्रतिनिधि का इस क्षेत्र में दखलंदाजी रोकी जाए, क्यूंकि ये डॉक्टर को हताश करते है और मरीजों को वंचित रखते है।

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