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गुरुवार को जरुर करें इस गुरु वंदना से बृहस्पती देव को प्रसन्न, पूर्ण होंगी समस्त मनोकामनाएं

जयपुर । गुरुवार का दिन देवों के गुरु बृहस्पती देव और श्रृष्टी के पालन कर्ता भगवान विष्णु को समर्पित होता हैं। इस लिए इस दिन देव गुरु बृहस्पती देव और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता हैं। इस लिए आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में रामचरित मानस में वर्णित गुरु
गुरुवार को जरुर करें इस गुरु वंदना से बृहस्पती देव को प्रसन्न, पूर्ण होंगी समस्त मनोकामनाएं

जयपुर । गुरुवार का दिन देवों के गुरु बृहस्पती देव और श्रृष्टी के पालन कर्ता भगवान विष्णु को समर्पित होता हैं। इस लिए इस दिन देव गुरु बृहस्पती देव और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता हैं। इस लिए आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में रामचरित मानस में वर्णित गुरु वंदना लेकर आए हैं।
गुरुवार को जरुर करें इस गुरु वंदना से बृहस्पती देव को प्रसन्न, पूर्ण होंगी समस्त मनोकामनाएं
गुरु वंदना

* बंदऊं गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥

अर्थात मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूं, जो सुरुचि सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1॥
गुरुवार को जरुर करें इस गुरु वंदना से बृहस्पती देव को प्रसन्न, पूर्ण होंगी समस्त मनोकामनाएं
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥

र्थात वह रज सुकृति रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥2॥
* श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥

अर्थात श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3॥
* उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4॥
गुरुवार को जरुर करें इस गुरु वंदना से बृहस्पती देव को प्रसन्न, पूर्ण होंगी समस्त मनोकामनाएं
बंदउं गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥

अर्थात मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूं, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5॥

* जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1॥

अर्थात जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥1॥

* गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउं राम चरित भव मोचन॥1॥
अर्थात श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूं॥1॥
गुरुवार को जरुर करें इस गुरु वंदना से बृहस्पती देव को प्रसन्न, पूर्ण होंगी समस्त मनोकामनाएं

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