जानिए देवोत्थान एकादशी का महत्व और पूजा विधि
भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं,और फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं।इन चार महीनों में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं और जब भगवान विष्णु जागते हैं तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न किया जाता हैं। देव जागरण या फिर उत्थान
भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं,और फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं।इन चार महीनों में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं और जब भगवान विष्णु जागते हैं तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न किया जाता हैं।
देव जागरण या फिर उत्थान होने के वजह से ही इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने का एक विशेष महत्व होता हैं, माना जाता हैं, कि इससे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इस बार देवोत्थान एकादशी 19 नवंबर यानी की आज हैं।
देवोत्थान एकादशी के दिन इन बातों का रखे ध्यान—
- निर्जल या केवल जलीय पदार्थों का उपवास रखना चाहिए।
- भगवान विष्णु या फिर अपने इष्ट देवता की उपासना अवश्य करें।
- इस व्रत में तामसिक आहार का सेवन बिल्कुल भी न करें।
- इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए।
देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि—
- गन्ने का मंडप बनाए, बीच में चौक बनाया जाता हैं।
- चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या फिर मूर्ति रख सकते हैं।
- चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्ह बनाये जाते हैं, जिसको बाद में ढक दिया जाता हैं।
- भगवान विष्णु को गन्ना, सिंघाडा तथा फल-मिठाई समर्पित किया जाता हैं।
- घी का एक दीपक जलाया जाता हैं, जो कि रातभर जलता रहता हैं।
- भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा की जाती हैं।
- फिर वही चरणों को स्पर्श करके उनको जगाया जाता हैं।
- इस समय शंख-घंटा और कीतर्न की आवाज़ की जाती हैं।
- इसके बाद व्रत उपवास की कथा सुनी जाती हैं।
- इसके बाद सारे मंगल कार्य विधिवत शुरू किए जा सकते हैं।