Samachar Nama
×

बर्फीले अंटार्कटिका में नई तकनीक से उगाए गए खीरा और मूली

जयपुर। दुनिया का एक ऐसा महाद्वीप जो ध्रुवों के नजदीक है और बर्फ ही बर्फ से घिरा हुआ है। यह मंज़र याद करते ही बर्फीले बंजर अंटार्कटिका की तस्वीर नज़रों के सामने बन जाती है। दरअसल इस दुर्गम महाद्वीप पर अब तक कोई भी ऐसी चीज उगाई नहीं जा सकी है जो खाने लायक हो।
बर्फीले अंटार्कटिका में नई तकनीक से उगाए गए खीरा और मूली

जयपुर। दुनिया का एक ऐसा महाद्वीप जो ध्रुवों के नजदीक है और बर्फ ही बर्फ से घिरा हुआ है। यह मंज़र याद करते ही बर्फीले बंजर अंटार्कटिका की तस्वीर नज़रों के सामने बन जाती है। दरअसल इस दुर्गम महाद्वीप पर अब तक कोई भी ऐसी चीज उगाई नहीं जा सकी है जो खाने लायक हो। क्योंकि यहां का वातावरण इसकी इजाजत नहीं देता है। मगर हाल ही में इसके ध्रुवीय इलाके में बने एक ग्रीन हाउस में कुछ ऐसा नजारा देखने को मिला है जो कि अब तक यहां एक ख्वाब ही था।

इसे भी पढ़ लीजिए:- जापान में खेतों की रखवाली कर रहे हैं ये खूंखार रोबोटिक…बर्फीले अंटार्कटिका में नई तकनीक से उगाए गए खीरा और मूली

दरअसल इस ग्रीन हाउस में एक जर्मन वैज्ञानिक ने सलाद के लिए खीरा और मूली उगाने में सफलता हासिल कर ली है। जी हां, इस वैज्ञानिक ने कई सालों की मेहनत के बाद अब जाकर इन हरी सब्जियों को उगाने में कामयाबी हासिल कर ली है। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इन पौधों पर कीटनाशकों का भी कोई खास प्रयोग नहीं किया गया हैं। यहां पर लगभग 18 खीरे और 70 मूलियां सफलतापूर्वक उगा ली गई हैं।बर्फीले अंटार्कटिका में नई तकनीक से उगाए गए खीरा और मूली

जर्मन पोलर रिसर्च स्टेशन नॉयमायर थ्री के पास बने एक ग्रीन हाउस में यह करिश्मा सच हो पाया है। इस वैज्ञानिक ने हरी सब्जियों के विकास के लिए एक स्पेशल पोषक घोल की तैयार किया है। कंप्यूटर नियंत्रित सिस्टम की मदद से यह घोल इन सब्जियों पर हर एक मिनट में छिड़का जाता है। इसी वजह से इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी हरी भरी सलाद यहां उग पा रही है।

इसे भी पढ़ लीजिए:- दुनिया की सबसे छोटी पेंसिल एक भारतीय ने बनाई हैबर्फीले अंटार्कटिका में नई तकनीक से उगाए गए खीरा और मूली

गौरतलब है कि अंटार्कटिका में सर्दी के मौसम में जर्मनी के इस स्टेशन का बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह से खत्म हो जाता है। ऐसे में यहां रहने वाले वैज्ञानिकों को रसद सामग्री में काफी मितव्ययता बरतनी पड़ती है। कई बार तो कम मात्रा में ही खाद्य सामग्री का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसी वजह से वैज्ञानिक ने इस समस्या को दूर करने का बीड़ा उठाया था।

Share this story