हींग का सेवन रोजाना करना सेहत के लिए है जरूरी जानिए क्यों ?
जयपुर । हिंग का नाम आते ही हमको तड़के की याद आ जाती है कभी डाल में लाग्ने वाला कब्जी कधी में कभी सब्जी में लाग्ने वाला तड़का । आखिर यह चीज़ ही ऐसी है । इसकी खुशबू किसी के भी मन को लुभाने लगती है । पर यह खुसभू तब ही लुभाती है जब इसकी मात्रा सही हो । हिंग खाने में बहुत ही अच्छी लगती है और इसका इस्तेमाल भी सभी करते हैं ।
पर शायद यह बात कोई भी नहीं जाता है की यह हिंग बनती कैसे और इसको खाने में इस्तेमाल किया क्यों काटा है । क्या इसका इस्तेमाल सिर्फ इसलिए किया जाता है क्योंकि यह खाने का स्वाद बढ़ाती है ? जी नहीं इसके पीछे बहुत ही बड़ा राज है । आइए जानते हैं इस बारे में की क्या है यह राज और कैसे बनती है हिंग ।
हिंग का पेड़ होता है यह सौंफ जैसा पेड़ होता है ।हिंग हमको उस पेड़ के नाट में से प्रापट होती है । इस हिंग के पेड़ को नीचे से चिरा जाता है उसमे से गौंद जैसा पदार्थ प्रापट होता है इसकी गंध इतनी तेज़ होती है की यह असहनिया होती है । इस गंध को इंग्लिश में देविल डंग कहा जाता है । यानि की राक्षस का गोबर । एक पेड़ से करीब 100 ग्राम से 300 ग्राम हिंग की प्रापति हो पाती है ।
इसकी खेती सबसे ज्यादा अफगानिस्तान और कश्मीर में सबसे ज्यादा होती है इसको वहाँ प्रोसेस करके बेचा जाता है । बाजार में मिलने वाली हिंग सिर्फ हिंग नही होती है इसमे आटा भी मिलाया जाता है । तब जा कर हमको हिंग प्रापट होती है ।
हिंग थोड़ी ग्राम तासीर की होती है । इसका सेवन पेट की बीमारी, अपच , गैस, पेट दर्द की परेशानी से बचाने का काम करता है ।
हिंग में केल्शियम , फास्फोरस , आइरन , केरेटिन , राइब्लोफेविन , एंटी बायोटिक , एंटीओक्सीडेंट , एंटी वायरल , एंटी बेक्टीरियल , एंटी स्पास्मोदिक , एंटी इन्फेलेंत्रि , एंटी कैंसर , नियासीन , फेरुलिक एसिड , अल्फा पायनिन , तर्पिनेयोल , एजुलीन ,ल्यूटेलिन इत्यादि गुण पाये जाते हैं ।