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जलवायु परिवर्तन भू-राजनीति के लिए सौदेबाजी का उपकरण न बने : Chinfing

जलवायु परिवर्तन का निपटारा करना पूरी मानव जाति का समान कार्य है, इसे भू-राजनीति के लिए सौदेबाजी की चिप नहीं बनानी चाहिए और दूसरे देशों पर हमला करने और व्यापारिक रुकावट डालने का बहाना नहीं होना चाहिए। यह बात चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने हाल में चीन-फ्रांस-जर्मनी शिखर वीडियो सम्मेलन में कही। बीते कई वर्षों
जलवायु परिवर्तन भू-राजनीति के लिए सौदेबाजी का उपकरण न बने : Chinfing

जलवायु परिवर्तन का निपटारा करना पूरी मानव जाति का समान कार्य है, इसे भू-राजनीति के लिए सौदेबाजी की चिप नहीं बनानी चाहिए और दूसरे देशों पर हमला करने और व्यापारिक रुकावट डालने का बहाना नहीं होना चाहिए। यह बात चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने हाल में चीन-फ्रांस-जर्मनी शिखर वीडियो सम्मेलन में कही। बीते कई वर्षों में एकतरफावाद और महामारी का राजनीतिकरण किए जाने जैसी तर्कहीन कार्रवाइयों से विश्व को नुकसान पहुंचाया और विश्व में अस्थिरता पैदा की। अगर जलवायु परिवर्तन का निपटारा करने के सवाल पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय खास तौर पर पश्चिमी देश इससे सबक नहीं लेते हैं, बहुत खराब परिणाम सामने आ सकते हैं।

सौभाग्य की बात है कि कई बड़े देशों के नेताओं ने साहस और दूरगामी सामरिक दृष्टिकोण दिखाया। इस बार के वीडियो शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों और जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने एक स्वर में कहा कि वे बहुपक्षवाद पर कायम रहेंगे, पेरिस समझौते का व्यापक कार्यान्वयन करेंगे और एक साथ न्यायपूर्ण और उचित वैश्विक जलवायु प्रशासन व्यवस्था की रचना करेंगे।

हाल में चीन के शिनच्यांग और हांगकांग आदि मसलों पर यूरोप के कई राजनेता अमेरिका के नेतृत्व वाले चीन विरोधी गठबंधन में शामिल हुए और चीन-यूरोप संबंधों को नुकसान पहुंचाया। फ्रांस और जर्मनी यूरोपीय संघ के दो सबसे अहम सदस्य देश हैं। इस समय उनके द्वारा चीन के साथ जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमति पाए जाने से यह जाहिर है कि यूरोपीय देशों में प्रमुख देश चीन के साथ सहयोग करने को महत्व देते हैं। दोनों के बीच समान हित संभवत: विचारधारा और राजनीतिक प्रणाली की भिन्नता से परे हो सकते हैं। इससे कुछ हद तक विश्व की चिंता में कमी आएगी।

जबकि कुछ दिन पहले जापान ने फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र से अपशिष्ट जल को समुद्र में डालने का फैसला लिया, जिसकी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने आलोचना की। टोक्यो के स्वार्थी रवैये का वाशिंगटन ने समर्थन किया। निसंदेह भू-राजनीति इसके पीछे का एक अहम ख्याल है। अमेरिका टोक्यो को हिंद महासागर रणनीति और चीन का मुकाबला करने का एक शतरंज का मोहरा बनाना चाहता है।

हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति जलवायु समस्या के विशेष दूत जॉन फोर्ब्स कैरी कई देशों का दौरा कर रहे हैं और अगले हफ्ते अमेरिका द्वारा आयोजित होने वाले वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए समझाने की कोशिश कर रहे हैं। बीते कई वर्षों में इस समस्या पर अमेरिका की गैरजिम्मेदारी को लेकर वाशिंगटन की ईमानदारी दिखने की प्रतीक्षा है।

जलवायु परिवर्तन का निपटारा करने के लिए सहयोग करना एकमात्र तरीका है। चीन, फ्रांस और जर्मनी ने विश्व को संकल्प और एक्शन दिखाया है। अमेरिका को विश्व जलवायु शिखर सम्मेलन के बहाने से तथाकथित जलवायु परिवर्तन संबंधी अगुवा बनने के बजाय विश्व को इस क्षेत्र में अपनी ईमानदारी दिखानी चाहिए।

न्यूज सत्रोत आईएएनएस

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