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100 वर्ष पुराने डीयू को कुलपति ने संकट में डाला : NDTF

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की कार्यकारी परिषद के कई सदस्य अब खुलकर निलंबित कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार त्यागी की मुखालफत कर रहे हैं। कार्यकारी परिषद के सदस्यों के साथ ही नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने भी गुरुवार को कुलपति के निलंबन की कार्रवाई को उचित ठहराया। विश्वविद्यालय कार्यकारी परिषद के सदस्य व नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट
100 वर्ष पुराने डीयू को कुलपति ने संकट में डाला : NDTF

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की कार्यकारी परिषद के कई सदस्य अब खुलकर निलंबित कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार त्यागी की मुखालफत कर रहे हैं। कार्यकारी परिषद के सदस्यों के साथ ही नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने भी गुरुवार को कुलपति के निलंबन की कार्रवाई को उचित ठहराया। विश्वविद्यालय कार्यकारी परिषद के सदस्य व नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के महासचिव डॉ. वीएस नेगी ने गुरुवार को आईएएनएस से कहा, “लगभग 100 वर्ष पुराने दिल्ली विश्वविद्यालय को कुलपति ने संकट में डाला। प्रोफेसर योगेश कुमार त्यागी का कार्यकाल अकर्मण्यता, तदर्थवाद, शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के स्थायी नियुक्ति और प्रमोशन के निर्देशों की अवहेलना और शिक्षक समुदाय में जानबूझकर असंतोष पैदा करने वाले अधिकारी के रूप में जाना जाएगा।”

डॉ. नेगी ने कहा, “न्यायालय में हलफनामा देने के बाद भी स्थायित्व की प्रक्रिया को डाला जाता रहा। इस अवधि में कर्मचारियों की नियुक्ति और प्रमोशन भी सिरे नहीं चढ़ सकी। इस प्रक्रिया में विजिटर, शिक्षा मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और विश्वविद्यालय समुदाय ने एक सबक सीखा जो इस प्रकार है कि प्रोफेसर त्यागी जैसा एक नकारात्मक, अकर्मण्य, असुरक्षित और अविश्वासी व्यक्ति को लंबे समय तक नहीं झेला जा सकता और ऐसा व्यक्ति सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थान के लिए बहुत घातक है।”

नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के अध्यक्ष डॉ. एके भागी ने आईएएनएस से कहा, “तदर्थवाद को इस हद तक स्थापित किया गया कि विश्वविद्यालय के वैधानिक पदों -उप कुलपति, निदेशक- दक्षिण परिसर, डीन ऑफ कॉलेजेज, रजिस्ट्रार, वित्त अधिकारी और अनेक प्राचायों को अस्थायी तौर पर अगले आदेश तक की अवधि के लिए नियुक्ति पत्र दिए जाते रहे। जो भी फाइल उनको भेजी गई उनको जानबूझकर रोका गया, जिससे वास्तव में फाइलों का अंबार लगता गया। सभी प्रमोशन, नियुक्तियां, अकादमिक और प्रशासनिक प्रक्रिया सचमुच ठहर-सी गई। कुछ न करना और खास तौर पर सकारात्मक काम न करना दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रशासनिक मंत्र बन गया।”

डॉ. एके भागी ने आईएएनएस से कहा, “2016-17 में इनके कारण विश्वविद्यालय को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के 150 करोड़ के विकास अनुदान से हाथ धोना पड़ा। विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त शिक्षक और उस समय यूजीसी के कमीशन के एक सदस्य के बारंबार समय पर कार्रवाई करने के अनुरोध के बावजूद ऐसा नहीं हुआ। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इस मुद्दे पर कई बार स्मरणपत्र भेजें और दो बार इस फंड के उपयोग की योजना और प्रमाणपत्र जमा कराने की तिथि सीमा भी बढ़ाई गई।”

डॉ. भागी ने कहा कि 21 अक्टूबर, 2020 के बाद लिए गए उनके निर्णय स्पष्ट रूप से अवैधानिक थे। बिना औपचारिक आवेदन के मेडिकल अवकाश लेकर इलाज व सर्जरी के लिए एम्स में भर्ती होना तथा बिना शारीरिक और मानसिक फिटनेस जमा करवाए उन्होंने अवैधानिक रूप से दक्षिण परिसर निदेशक व रजिस्ट्रार पद पर कार्यरत प्रोफेसर जोशी को पदच्युत कर दिया और प्रोफेसर पी.सी. झा की नियुक्ति की। इस समय वह इस कार्य को करने के सक्षम अधिकारी नहीं थे।

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस

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