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Bangladesh के कट्टरपंथी इस्लामवादी हिफाजत प्रमुख शफी का निधन

हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश के अमीर, शाह अहमद शफी का 104 वर्ष की आयु में असगर अली अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह काफी समय से बीमार थे और लाइफ सपोर्ट पर थे। उन्हें हाल ही में इलाज के लिए ढाका लाया गया था। बांग्लादेश के राष्ट्रपति एम. अब्दुल हामिद और प्रधानमंत्री शेख हसीना
Bangladesh के कट्टरपंथी इस्लामवादी हिफाजत प्रमुख शफी का निधन

हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश के अमीर, शाह अहमद शफी का 104 वर्ष की आयु में असगर अली अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह काफी समय से बीमार थे और लाइफ सपोर्ट पर थे। उन्हें हाल ही में इलाज के लिए ढाका लाया गया था। बांग्लादेश के राष्ट्रपति एम. अब्दुल हामिद और प्रधानमंत्री शेख हसीना ने शुक्रवार को शफी की मौत पर गहरा दुख व्यक्त किया।

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अपने अलग-अलग शोक संदेश में उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की।

अहमद शफी को जनाजे के बाद मदरसे में कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर को ले जा रही एक एम्बुलेंस शुक्रवार की रात को करीब 10.20 बजे अस्पताल से उनके गांव चट्टोग्राम के लिए रवाना हो गई।

साल 2010 में हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश की स्थापना के बाद शफी सुर्खियों में आए।

हिफाजत-ए-इस्लामी प्रमुख और हतजारी मदरसा के महानिदेशक के रूप में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान शफी ने पहली बार 5 मई, 2013 को हिफाजत-ए इस्लाम के कार्यकर्ताओं की रैली से सुर्खियां बटोरीं थी। यह रैली हिंसक हो गई थी और कार्यकतार्ओं ने मोतीझील को करीब 12 घंटे तक कब्जे में रखा था, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने कार्रवाई कर उन्हें वहां से हटाया था।

राजधानी के पल्टन और मोतीझील क्षेत्र तबाही के ²श्य में तब्दील हो गए थे, वहीं हेफाजत के कार्यकर्ताओं ने संपत्ति को जला दिया था और तोड़फोड़ की थी। इसके साथ ही वे सुरक्षाकर्मियों से भी भिड़ गए थे। हिंसा में करीब 39 लोग मारे गए थे।

वह अक्सर अपने प्रवचन के दौरान अपनी भड़काऊ टिप्पणियों को लेकर खबरों में रहते थे, विशेष रूप से महिलाओं पर उनकी रूढ़िवादी टिप्पणियों के लिए वे जाने जाते थे।

उन्हें महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ और उनके नौकरी करने के खिलाफ उनके रुख के लिए जाना जाता था। साल 2013 में एक धर्मोपदेश के दौरान उन्होंने महिलाओं की तुलना इमली से की थी।

उन्होंने कहा था, “तुम महिलाओं को अपने घरों की चार दीवारी के भीतर रहना चाहिए। अपने पति के घर के अंदर बैठकर, तुम्हें अपने पति के फर्नीचर का ध्यान रखना चाहिए और अपने बच्चों का पालन और बेटों की सही परवरिश करनी चाहिए। ये तुम्हारें काम हैं। तुम्हें बाहर क्यों जाना है?”

साल 2019 में हतजारी मदरसे के छात्रों के माता-पिता को दिए गए एक उपदेश के दौरान शफी ने अभिभावकों से कहा था कि वे अपनी बेटियों को कक्षा चार या पांच से आगे पढ़ने के लिए स्कूल न भेजें।

साल 2019 में एक ‘शोकराना महफिल’ में कवमी मदरसा शिक्षा बोर्ड का नेतृत्व करने वाले शफी ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को ‘कवमी की मां’ की उपाधि दी थी।

शफी ने निधन के एक दिन पहले ही अल-जमीअतुल अहलिया दारुल उलुम मुइनुल इस्लाम मदरसा, जो हतजारी मदरसा के नाम से लोकप्रिय है उसके महानिदेशक के पद से इस्तीफा दिया था। हतजारी मदरसा में शनिवार को नमाज-ए-जनाजा का आयोजन किया जाएगा।

साल 1916 में चट्टोग्राम के रंगुनिया में जन्मे शाह अहमद शफी ने अल-जमीअतुल अरबियातुल इस्लामिया में अध्ययन किया था।

वह इस्लामिक विश्वविद्यालय दारुल उलुम देवबंद में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए भारत गए थे। इसके बाद वह साल 1926 में हतजारी मदरसे से जुड़े। शफी ने अपने करियर की शुरूआत हतजारी में अल-जमीअतुल अहलिया दारुल उलुम मोइनुल इस्लाम में एक शिक्षक के रूप में की थी।

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस

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