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आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

रिसर्च में यह बात सामने आयी कि 22 में से 10 मरीज यानी करीब 45 प्रतिशत की तो अस्पताल में ऐडमिट होने के 15 दिन के अंदर ही मौत हो गई थी। बाकी के 12 मरीजों को बचा तो लिया गया लेकिन करीब 23 दिनों तक उन्हें अस्पताल में ही भर्ती रहना पड़ा और उन्हें बेहद पावरफुल दवाइयां देनी पड़ीं।
आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

 

जयपुर । एंटीबायोटिक दवाएं हमारे शरीर को बीमारियों से लड़ने की शक्ति देती है । हम ये कह सकते हैं की ये कृत्रिम रूप से हमारी रोग प्रति रोधक क्षमता को बढ़ाने का एक तरीका है । पर ये दवाएं असल में  हमारे शरीर में  प्राकृतिक रूप से मौजूद रोग प्रतिरोध क्षमता को कम कर देती है जिससे की हमको बार बार बीमारियाँ तो घेर ही लेती है साथ ही दवाओ का असर भी कम कर देती है ।आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

एंटीबायोटिक दवाएं किसी भी मरीज को तब दी जाती है जब तकलीफ सामान्य से ज्यादा बढ़ रही होती है ताकि बीमारी जल्द से जल्द ठीक हो जाये । पर हाल ही में जिन दवाओं को आखरी विकल्प यानि की सबसे हाई डोज़ माना गया वह भी मरीजों को बचाने में विफल पाई जा रही है ।

आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

यह बात सामने आई एम्स के द्वारा सूत्रों के अनुसार पता चला है की पिछले 22 महीनो में अभी तक 10 मरीजों की मौत इसलिए हो गई क्योंकि आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीब्याओटिक दवाओं ने भी मरीजों की बीमारी आर काम नहीं किया और इसके चलते उन रोगियों की मौत हो गई ।आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

रिसर्च में यह बात सामने आयी कि 22 में से 10 मरीज यानी करीब 45 प्रतिशत की तो अस्पताल में ऐडमिट होने के 15 दिन के अंदर ही मौत हो गई थी। बाकी के 12 मरीजों को बचा तो लिया गया लेकिन करीब 23 दिनों तक उन्हें अस्पताल में ही भर्ती रहना पड़ा और उन्हें बेहद पावरफुल दवाइयां देनी पड़ीं।आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

:- आज कल ज़्यादातर डॉक्टर्स हर छोटी  बड़ी बीमारी हो जाने पर तुरंत एंटीबायोटिक की हाई डोज़ लिख देते है । इतना ही नही कई कई बार तो ये भी देखा गया है की एक दिन मे 1500 एमजी की डोज़ दी जाती है । वह भी कम उम्र में ही इसके कारण आगे चल कर लोगों के शरीर पर इन दवाओं का असर होना भी धीरे धीरे खत्म ही जाता है और शरीर बे हद कमजोर होता चला जा रहा है । इन दवाओं के फेल होने का कारण ये भी हो सकता है । इसलिए आप अपने प्रति जितना हो सके सजग रहे और बिना किसी कारण या छोटी बीमारियों जैसे सर्दी , जुकाम , खांसी , बुखार ऐसी बीमारियों में हाई डोज़ एंटीबायोटिक लेने से बचे ।आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

 रिसर्च में यह बात सामने आयी कि 22 में से 10 मरीज यानी करीब 45 प्रतिशत की तो अस्पताल में ऐडमिट होने के 15 दिन के अंदर ही मौत हो गई थी। बाकी के 12 मरीजों को बचा तो लिया गया लेकिन करीब 23 दिनों तक उन्हें अस्पताल में ही भर्ती रहना पड़ा और उन्हें बेहद पावरफुल दवाइयां देनी पड़ीं। आखरी विकल्प के तौर पर काम आने वाली एंटीबायोटिक ने भी नहीं किया असर

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