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‘जापानी नेताओं को आकस्मिक तौर पर इस्तेमाल करता है America’

चीन में स्थानीय समयानुसार 16 अप्रैल को अमेरिका और जापान के शिखर सम्मेलन के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया, जिसकी मुख्य थीम चीन का सामना करना है। पूर्वी सागर, दक्षिण चीन सागर, थाईवान, हांगकांग और शिनच्यांग जैसे चीन की प्रभुसत्ता और केंद्रीय हितों से संबंधित मुद्दे सब वक्तव्य में पेश किए गए थे।
‘जापानी नेताओं को आकस्मिक तौर पर इस्तेमाल करता है America’

चीन में स्थानीय समयानुसार 16 अप्रैल को अमेरिका और जापान के शिखर सम्मेलन के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया, जिसकी मुख्य थीम चीन का सामना करना है। पूर्वी सागर, दक्षिण चीन सागर, थाईवान, हांगकांग और शिनच्यांग जैसे चीन की प्रभुसत्ता और केंद्रीय हितों से संबंधित मुद्दे सब वक्तव्य में पेश किए गए थे। लगता है, मानो जापान अमेरिका का दास और मोहरा हो। निहोन कीजै शिंबुन ने रिपोर्ट देकर कहा कि जापान की मौजूदा स्थिति अमेरिका के लिए उपयोगी है, लेकिन वास्तव में जापानी राजनेताओं को अमेरिका द्वारा आकस्मिक रूप से उपयोग किया जाता है।

उल्लेखनीय बात यह है कि इस संयुक्त वक्तव्य में पहली बार थाईवान मसले को भी शामिल किया गया, जो एक अहम प्रवृत्ति है। जापान ने खुलेआम चीन-जापान संबंधों के निषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश किया और बहुत खतरनाक कदम उठाया। जापान के चीन आक्रमण इतिहास और चीन के थाईवान में जापान के औपनिवेशिक इतिहास के मद्देनजर यह कदम भावी जापान-चीन संबंधों पर बुरा असर डालेगा।

इधर के वर्षों में जापान ने चीन के संबंधों का सुधार करने की इच्छा प्रकट की, लेकिन अचानक चीन विरोधी कार्रवाई क्यों की? अमेरिका के बाहरी दबाव के अलावा जापान अमेरिका का प्रयोग कर चीन को नियंत्रित भी करना चाहता है। जापान में अब महामारी के झटके में है। 2020 में जापान की आर्थिक विकास दर 4.83 प्रतिशत रही। महामारी में विफल होने और आर्थिक मंदी की वजह से जापान घरेलू समस्याओं से ध्यान भटकाना चाहता है, ताकि सितंबर में आयोजित होने वाली लिबरल डेमोक्रेटक पार्टी के अध्यक्षीय चुनाव में जीत हासिल की जा सके, जबकि बाइडेन सरकार के सत्ता में आने के बाद चीन को प्रतिद्विंदी बनाने से जापान को आवश्यक मौका मिला है।

लेकिन जापान के राजनेताओं को यह स्पष्ट रूप से जानना चाहिए कि थाईवान सवाल चीन के केंद्रीय हितों से संबंधित है। यदि जापान अमेरिका के साथ मिलकर इस मसले पर चीन को चुनौती देगा, तो जापान को जबरदस्त प्रतिक्रिया जरूर मिलेगी। 2022 में चीन और जापान के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ होगी। क्या जापान सरकार प्रतिरोध के तरीके से इस ऐतिहासिक महत्व वाले साल का स्वागत करेगी?

इतिहास से पहले ही साबित हो चुका है कि सबक न लेने वाले देशों का उज्‍जवल विकास भविष्य नहीं होगा। जापानी राजनेता अंतत: अपने द्वारा द्वारा लगाया गया कड़वा फल खाएंगे।

न्यूज सत्रोत आईएएनएस

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