मौनी अमावस्या के दिन क्यों होती है श्री विष्णु और पीपल की पूजा
मौनी अमावस्या इस साल 24 जनवरी को पड़ी रही हैं माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन पड़ने वाली अमावस्या को ही मौनी अमावस्या कहा जाता हैं हिंदू पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखकर संयमपूर्वक उपवास किया जाता हैं जिससे मुनि पद की प्राप्ति मनुष्य को होती हैं। वही ऐसा कहा जाता हैं होठों से ईश्वर के नाम का जाप करने पर जितना पुण्य प्राप्त होता हैं उससे कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति मन में हरी नाम का जप करने से होती हैं। मौनी अमावस्या के दिन श्री हरि विष्णु और पीपल के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता हैं मौनी अमावस्या की कथा में इस पूजन से जुड़ी कई सारी बातें लिखी हैं जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं मौनी अमावस्या से जुड़ी कथा। जानिए मौनी अमावस्या व्रत की पूर्ण कथा—
बता दें कि कांची पुरी नगर में एक ब्राह्मण देवस्वामी था। उसकी पत्नी धनवती और पुत्री गुणवती भी थी। उनके अतिरिक्त उसके सात पुत्र थे। देवस्वामी ने सभी पुत्रों का विवाह करने के बाद पुत्री के विवाह के लिए योग्य वर की तलाश के लिए अपने बड़े बेटे को नगर से बाहर भेजा। फिर उसने अपनी पुत्री की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई ज्योतिषी ने कहा कि विवाह के समय सप्तपदी होते ही यह कन्या विधवा हो जाएगी। यह सुन कर वह दुखी हो गया। ज्योतिषी से उपाय पूछने पर बताया कि इस योग का निवारण सिंहलद्वीप निवासी सोमा नामक धोबिन को घर बुलाकर उसकी पूजा करने से ही होगा।
देवस्वामी ने अपने छोटे बेटे के साथ पुत्री को धोबन को लाने भेज दिया। वे दोनों समुद्र तट पर पहुंचे और समुद्र को पार करने का उपाय सोचने लगे। कोई उपाय न मिलने पर दोनों एक वट वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था। उसके बच्चों ने दोनों को परेशान देख कर शाम को गिद्धों की मां से बच्चों ने बताया। यह सुनकर मां को दया आ गयी और उसने दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया। सोमा धोबिन को घर लेकर आए और उसकी पूजा की, जिसके बाद ब्राह्माण देवस्वामी की पुत्री का विवाह हुआ। सप्तपदी होते ही उसके पति की मौत हो गई तब सोमा ने गुणवती को अपने पुण्य का फल दान कर दिया। जिससे उसका पति जीवित हो गया।