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‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता: मनोज बाजपेयी

कुछ ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और अहम फैसला सुनाया है। जी हां सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाले कठोर कानून को रद्द कर दिया है। जैसे ही कोर्ट ने इस फैसले को सुनाया वैसे ही चारों तरफ खुशी का माहौल हो गया। वहीं बॉलीवुड के कुछ सेलेब्स ने कोर्ट
‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता: मनोज बाजपेयी

कुछ ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और अहम फैसला सुनाया है। जी हां सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाले कठोर कानून को रद्द कर दिया है। जैसे ही कोर्ट ने इस फैसले को सुनाया वैसे ही चारों तरफ खुशी का माहौल हो गया। वहीं बॉलीवुड के कुछ सेलेब्स ने कोर्ट के इस फैसले को सराहा। जिसके करण जौहर, स्वरा भास्कर और मनोज बाजपेयी जैसे कई सेलेब्स शामिल है। हाल ही में मनोज ने इस पर बात की। मनोज वाजपेयी ने कहा कि, मैंने ‘अलीगढ़’ में जब समलैंगिक प्रवक्ता रामचंद्र सिरास का किरदार निभाया, तब मैंने जाना कि अकेलापन क्या होता है। मेरे लिए व्यक्ति का अकेलापन उसकी यौन उन्मुक्तता से ज्यादा मायने रखता है। मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला देशभर के ऐसे सताए गए और भेदभाव से पीड़ित लोगों की जीत है।‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता: मनोज बाजपेयी

मनोज ने कहा कि, कमजोर लोगों की मदद के लिए हम सबको सरकार और कानून की जरूरत है। अलीगढ़ का प्रोफेसर अगर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता।‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता: मनोज बाजपेयी

मनोज ने अपनी फिल्म अलीगढ़ को याद करते हुए कहा कि, मैं तब अकेलेपन से परेशान एक आदमी जैसा महसूस करता था, जिसे सेक्स से ज्यादा किसी के साथ की जरूरत थी। एलजीबीटी समुदाय के हमारे सभी साथियों को हमारे समर्थन और मदद की जरूरत है। ‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता: मनोज बाजपेयीसुप्रीम कोर्ट के फैसले से समलैंगिक लोगों के लिए स्थिति सामान्य करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा है लेकिन उनके अधिकारों के लिए हमें अभी लंबा सफर तय करना है।‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता: मनोज बाजपेयी

उन्होंने आगे कहा कि, अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी यह समुदाय है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे फिल्म इंडस्ट्री में खासतौर से समलैंगिकों से भेदभाव किया जाता है। जब ‘अलीगढ़’ के सामने कई बाधाएं आईं, तो मीडिया ने इसका बचाव किया। ट्रेलर को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिला था, जिससे हम इसे टीवी पर नहीं दिखा सकते थे। इसके बावजूद चैनलों ने हमें संगीत और डांस शोज में फिल्म का प्रचार करने के लिए आमंत्रित किया।

‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता: मनोज बाजपेयी

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