आखिर कैसे आपने पड़ोसी से और पड़ोसी ने आपने रुख मोड लिया है
जयपुर । हम सभी ने अपने बड़ों से यह कहावत कभी न कभी सुनी हाई । पहला सगा पड़ोसी ही होता है । अर्थात परेशानी के समय हो या खुशियों का समय सबसे पहले काम पड़ोसी ही आता है । जब भी हम किसी परेशानी मेन होते हैं तो एक परिवार के सदस्य की तरह ही पड़ोसी सबसे पहले हमारे काम आता है । रात का समाय हो और कोई अनहोनी होने पर भी हम सबसे पहले उनको ही आवाज़ देते हैं ।
चाहे परिवार कितना भी बड़ा क्यों न हो परिवार में दादा जी से लेकर पड पोते पोती ही क्ल्योन ना हो पीआर फिर भी जब कोई झडगा हो या घर का राशन खत्म होने पर हुई इमरजेंसी हमको याद पड़ोसी की आती है । पर अचानक से धीरे धीरे जिस तरह से हमारे घर परिवार के रिश्तों में बदलाव आने लगा है वैसे ही हमारे सबसे जरूरी रिश्ते पड़ोसी दारम में भी बहुत बदलाव सा हो गया है । कभी हैममे से किसी ने ना इस बात पर गौर नहीं किता की क्यों अचानक वह हमारा सबसे खूबसूरत रिश्ता अचानक से बदल रहा है या ऐसा क्या होगा है की उस रिश्ते के मायने ही बदल से गए हैं ।
एक समय था जब हम कोई भी खुशी को बटने के लिए सबसे पहले दौड़ कर पड़ोसी के घर में जया करते थे । पड़ोस के घर में रहने वाली आंटी भी चाची , ताई, भुआ, मौसी , भाबी के नाम से जानी जाती थी । एक थाली में जहां पड़ोस की काकी का बच्चा और हम खाना खा भी लेते तो किसी को कोई फरक नही पाड़ता था ना बच्चा भूखा होगा यह चिंता होती थी । खाने की खुसबु ही हमको उनके घर की रसोई में आवाज़ लगा कर खुद ब खुद उन्के घर में दावत बुला लेने का हक़ भी देती थी । देर रात घर से बाहर रहने पर घर की चिंता नही सताती थी की पीछे कोई आयेगा तो कहाँ जाएगा या कोइ चोरी तो नही हो जाएगी । घर के आधे बच्चे पड़ोसी के घर में हो हल्लड़ करते तो कभी कुछ नया सीखते मिला करते थे । इतना ही नही कई बार तो छोटे नवजात बच्चों की देखभाल और घर का काम अकर्ण जब मुश्किल हुआ करता था तो बच्चा संभाल लेने की ज़िम्मेदारी भी उनके रहते ज़िम्मेदारी नही लगती त्झि । बच्चों के संस्कार हों या कोई और बात सब बस बहुत आसानी से हो जाया करता था ।
जो अपनापन , प्यार , दुलार , हक़ पड़ोसी का हो जाया करता था । आज वह बिलकुल खो सा गया है । पर ऐसा क्यों हुआ यह कभी हमने नहीं जाना ।
आज जिस त्राह का रिश्ता हमारा पड़ोसी से हो चला है की हम उनको देखना भी पसंद नही करते हैं । न वो हमको । कभी हम उनकी शिकायत ले पाहुयांच्ते हैं तो कभी वह हमारी । एक कचरे के डिब्बे पर आज महाभारत हो जाना तक तय हो जाता है बच्चे को पड़ोसी के साथ देख लिया तो बच्चे की पिटाई तय , खाने का सामान खतम हो गया तो ऑनलाइन खाना तय ,चीनी खतम हो गई तो बाहर की चाय तय । आखिर ऐसा क्या हो गया है /। आइये आज हम आपको इस बात से भी रूबरू करवा देते हैं ।
पहले हमारे पड़ोसी रिश्ते में अपनापन , भरोसा , प्यार और सबसे बड़ी चीज़ दिखावा नही था । जहां पर हम कोई नई चीज़ ले कर आए तो उनको खुशी और वह कुछ नया लाये तो हमको खुसी हुआ करती थी । पड़ोस का बच्चा अमेरिका गया तो गर्व हमको होता था यह भावना होती थी । उसस्की पेकिंग में खाने का सामान पड़ोसी के घर से जाना भी तय था यानि बच्चों में भी भेद भाव नही किया जाता था । सभी आपस में एक दूसरे के अनुरूप ढाल जाना पसंद करते थे ।
पर आज यही ही सब उल्टा हो गया है । प्यार की जगह नफ़रत ने ले ली , अपनेपन की जगह ईर्ष्या , द्वेष , जलन ने , भरोसे की बात तो आज घर के सगे माँ बाप पर ही नही रही तो पड़ोसी से तो किसी कीमत पर नही , और स्टेटस और दिखाव और प्रतिस्पर्धा यह तो कूट कूट कर भर गया है । आज ना हम उनके आराम और सहूलियत का ध्यान रखते है ना लाज शर्म , ना वो हमारे लिए सोच पाते हैं की इनकी भी यह जरूरत है हम शांत रह जाएँ । अब बात आकार या तो एक दूसरे से हो रही सहज भावनाओं से हो गई है दिक्कतों से हो गई है या फिर बात आ कर एक दूसरे से शिकायतों पर रुक गई है । बच्चा पअड़ोसी के बच्चे से ज्यादा अच्छी स्कूल में जाना जरूरी हो गया भले ही घर में खाने को पैसे न बचे , महिलाओं को साड़ी कॉटन से सिल्क सिल्क से जारी की जरूरत बन गई , पापा हो या पड़ोसी , दोनों को एक दूसरे की कार और बड़ी9 कार से दिक्कत होने लगी । यहाँ पर अहम की9 भावना ने जन्म ले लिया । और हमने एक दूसरे की जारूईरत और सबसे खूबसूरत रिश्ते से रुख मोड लिया ।