रामायण के इस कांड से जान सकते है प्रशंसा करने के फायदे
जयपुर। हम सभी लोगो में एक बात साधारण होती है जिसमें हमें दूसरों से अपनी प्रशंसा सुनना बहुत पसंद हैं। इसके साथ ही प्रशंसा और प्रसन्नता एक-दूसरे से जुड़े दो पहलू हैं। इसके साथ ही हमेशा प्रसन्न मन को नये और सकारात्मक विचारों का घर माना जाता है। इसके साथ ही दूसरा पहलू यह है कि प्रशंसा करना भी एक कला है जो हर किसी के पास नहीं होती। कुछ लोग प्रशंसा करने में कंजूसी करते है तो कुछ लोग प्रसंसा करने में कजूसी करते हैं। कुछ ही लोग होते हैं जिनको खुले मन से प्रशंसा करना आता हैं।
जिनके पास प्रशंसा करने का हुनर होता है। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो दिल से दूसरों की प्रशंसा करते हैं। कई लोग तो केवल अपने लाभ के लिए दूसरो की प्रशंसा करते हैं। अगर हम किसी की प्रशंसा करते है तो उसको प्रोत्साहित करते है, जब हम किसी बात को लेकर उसकी प्रशंसा करते हैं तो उसके अंदर आत्मविश्वास आता है वह बेहतर को और बेहतर करने की कोशिश करता है।
वैसे भी कई बार हमारा अंतर्मन जिस चीज को सच समझ लेता है हम वैसे ही बन जाते हैं। इस संबंध में रामायण के अन्तर्गत कही गई एक बात हम आपको बता रहें हैं। रामचरितमानस के सुंदर काण्ड में जब हनुमान को सीता की खोज करने के लिए समुद्र के पार जाना था, उस समय वे उदास और चुपचाप बैठे थे। तब जामवंत जी ने हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए उनको प्रोत्साहित किया जिससे उनका आत्मविश्वास बढा तो उनको सागर को पार करने का हौसला आया।
वैसे भी साधारण शब्दों में समझा जाए तो अपनी तारीफ सुनना किसे पसंद नहीं होता। सभी चाहते हैं उसके काम की, प्रयासों की लोग प्रशंसा करें। प्रशंसा करने से मन को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। व्यक्तित्व में प्रशंसा करने से निखार आता है।