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मौत पर विजय के 76 साल, जानें इस मशहूर वैज्ञानिक की प्रेरणादायक कहानी

एएलएस नामक लाइलाज बीमारी से पीड़ित स्टीफन हॉकिंग का आज निधन हो गया है। हालांकि चिकित्सकों ने 21 साल की उम्र में ही स्टीफन को कह दिया था कि वह अब केवल दो साल और जी पाएंगे। लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञों के तमाम दावों को झुठलाते हुए स्टीफन ने अपने जीवन के 76 साल पूरे कर
मौत पर विजय के 76 साल, जानें इस मशहूर वैज्ञानिक की प्रेरणादायक कहानी

एएलएस नामक लाइलाज बीमारी से पीड़ित स्टीफन हॉकिंग का आज निधन हो गया है। हालांकि चिकित्सकों ने 21 साल की उम्र में ही स्टीफन को कह दिया था कि वह अब केवल दो साल और जी पाएंगे। लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञों के तमाम दावों को झुठलाते हुए स्टीफन ने अपने जीवन के 76 साल पूरे कर लिए। 1988 में जर्मन पत्रिका डेय स्पीगल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि हम सभी यह जानते है कि हम कहां से आए हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम की 10 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं जिसमें उन्होंने बिग बैंग सिद्धांत, ब्लैक होल, प्रकाश शंकु और ब्रह्मांड के विकास के बारे में बताकर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था।

मौत पर विजय के 76 साल, जानें इस मशहूर वैज्ञानिक की प्रेरणादायक कहानी

इस किताब से ही हॉकिंग आम जनता में लोकप्रिय हो गए थे। साथ ही हॉकिंग विज्ञान जगत का चमकता सितारा बन गए। 1974 में हॉकिंग ने दुनिया को अपनी सबसे महत्वपूर्ण खोज ब्लैक होल थ्योरी दी थी। हॉकिंग की माने तो ब्लैक होल क्वांटम प्रभावों की वजह से ही अपने आकार में वृद्धि कर पाते हैं। महज 32 वर्ष की उम्र में वह ब्रिटेन की सबसे खास रॉयल सोसाइटी के सबसे कम उम्र के सदस्य बने थे। पांच साल बाद ही वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर बन गए। यह वही पद था जिस पर कभी महान वैज्ञानिक आइनस्टीन नियुक्त थे।

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हॉकिंग को बचपन में ही मोटर न्यूरोन नामक गंभीर बीमारी हो गई थी। इसमें शरीर की मांस पेशियां काम करना बंद कर देती हैं, और इंसान चलने फिरने के लिए भी मोहताज हो जाता है। हॉकिंग चल फिर नहीं सकते थे, सो व्हीलचेयर पर वह बातें भी कंप्यूटर की सहायता से ही कर पाते थे। हॉकिंग की चेयर में एक विशेष उपकरण लगा रहता था, जिसकी सहायता से वह रोजमर्रा के काम के आलावा अपनी खोज में भी व्यस्त रह पाते थे।

मौत पर विजय के 76 साल, जानें इस मशहूर वैज्ञानिक की प्रेरणादायक कहानी

बीते कुछ सालों में हॉकिंग ने अपने सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक और सॉफ्टवेयर इंजीनियर अरुण मेहता से भी संपर्क किया था। 2007 में विकलांगता के बावजूद उन्होंने विशेष रूप से तैयार किए गए विमान में बिना गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र में उड़ान भरी थी। वह 25-25 सेकेण्ड के कई चरणों में गुरुत्वहीन क्षेत्र में रहे थे। इसके बाद उन्होंने अंतरिक्ष में उड़ान भरने के अपने सपने के और नजदीक पहुचने का दावा भी किया था। वह हम सबके लिये एक प्रेरणा स्त्रोत की तरह काम करेंगे।

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