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सरकार गाड़ियों के लिए न्यू तकनीक लेकर आइ हैं अगर ड्राईवर ने शराब पी राखी है तो गाड़ी नाराज़ हो जाएगी

सरकार ने ट्रैफिक पुलिस को ड्रंकन ड्राइविंग रोकने के लिए एल्कोमीटर दे रखे हैं, लेकिन इनकी संख्या भी बेहद सीमित है, साथ ही कोरोना काल में इनके इस्तेमाल पर रोक लगी हुई है सरकार जल्द ही कारों में ऐसी डिवाइस लाने जा रही है, जो ड्रंकन ड्राइविंग से होने वाले सड़क हादसों पर काफी हद
सरकार गाड़ियों के लिए न्यू तकनीक लेकर आइ हैं अगर ड्राईवर ने शराब पी राखी है तो गाड़ी नाराज़ हो जाएगी

सरकार ने ट्रैफिक पुलिस को ड्रंकन ड्राइविंग रोकने के लिए एल्कोमीटर दे रखे हैं, लेकिन इनकी संख्या भी बेहद सीमित है, साथ ही कोरोना काल में इनके इस्तेमाल पर रोक लगी हुई है सरकार जल्द ही कारों में ऐसी डिवाइस लाने जा रही है, जो ड्रंकन ड्राइविंग से होने वाले सड़क हादसों पर काफी हद तक लगाम लगा सकेगी। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2016 से 2018 तक देशभर में शराब पीकर गाड़ी चलाने की वजह से 40983 दुर्घटनाएं हुईं। मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 185 में शराब पीकर गाड़ी चलाने के अपराध के लिए कारावास या जुर्माने की सजा या दोनों का ही प्रावधान है। बावजूद इसके शराब पीकर ड्राइविंग करने वालों की तदाद में कोई कमी नहीं आ रही है। अब सरकार ने ऐसा रास्ता खोजा है, जिसके बाद अगर शराब पीकर कार चलाने की कोशिश की, तो कार स्टार्ट ही नहीं होगी।सरकार गाड़ियों के लिए न्यू तकनीक लेकर आइ हैं अगर ड्राईवर ने शराब पी राखी है तो गाड़ी नाराज़ हो जाएगी

पुलिस के लिए मुश्किल नहीं होगी =>सरकार ने ट्रैफिक पुलिस को ड्रंकन ड्राइविंग रोकने के लिए एल्कोमीटर दे रखे हैं, लेकिन इनकी संख्या भी बेहद सीमित है, साथ ही कोरोना काल में इनके इस्तेमाल पर रोक लगी हुई है। जिसके चलते केवल ब्लड सेंपल लेकर ही नशे मे ड्राइविंग करने वालों की जांच की जा सकती है, वहीं इसके साथ में दूसरी समस्या ये है कि इसके लिए डॉक्टर और उच्च अधिकारियों की अनुमति लेनी आवश्यक है। वहीं ट्रैफिक पुलिस के यह पता लगाना मुश्किल होता है कि कौन ड्राइवर नशे में है। केवल उसके हावभाव जैसे तेज ड्राइविंग या जिगजैग ड्राइविंग से ही एसे लोगों का पता लगाया जा सकता है।सरकार गाड़ियों के लिए न्यू तकनीक लेकर आइ हैं अगर ड्राईवर ने शराब पी राखी है तो गाड़ी नाराज़ हो जाएगी

सरकार ने दी मंजूरी दे दी हैं =>पुलिस की मजबूरी को देखते हुए सरकार ने वाहनों में अल्कोहल इग्निगेशन इंटरलॉक डिवाइस लगाने की मंजूरी दे दी है। इससे शराब के नशे में वाहन चलाने वाले लोगों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा। इस डिवाइस को कार के इंजन के साथ लगाया जाएगा और जैसे ही ड्राइवर कार ड्राइव करने के लिए बैठेगा, तो उसे पहले इस डिवाइस में फूंक मारनी होगी। जिसके बाद यह डिवाइस जान लेगी कि ड्राइवर नशे में है या सामान्य है।

दिखाई फेल या पास होगा या नहीं=> सरकार इस डिवाइस को गाड़ियों में चरणों में लगाएगी। पहले चरण में इसे केवल कार के साथ कनेक्ट किया जाएगा। पुराने बड़े मोबाइल फोन जैसी दिखने वाली इस डिवाइस को कार के इग्निगेशन से जोड़ा जाएगा। जैसे ही ड्राइवर कार में बैठेगा, तो इग्निगेशन देने से पहले उसे डिवाइस के ऊपर लगे पाइप पर फूंक मारनी होगी। अगर ड्राइवर नशे में होगा तो डिवाइस के डिस्प्ले पर फेल लिखा दिखाई देगा और इंजन स्टार्ट नहीं होगा। वहीं सामान्य होने पर डिवाइस पर पास लिखा दिखाई देगा और इंजन स्टार्ट हो जाएगा। यह उपकरण जीपीएस से लैस होगा और लोकेशन की रीयल टाइम जानकारी देगा।

इन् लोगो की गाड़ियों में लगेगी =>हालांकि इस डिवाइस का इस्तेमाल इस बात की पुष्टि नहीं कर सकता कि ड्राइवर नशे में है या सामान्य है। क्योंकि ड्राइवर अगर नशे में भी होगा, तो किसी अन्य के जरिए फूंक से कार स्टार्ट कर सकता है। हालांकि सरकार इसे ट्रायल के तौर पर पहले उन लोगों की गाड़ियों में लगाएगी, जो ड्रंकन ड्राइविंग करते हुए पकड़े गए हैं। जरूरत पड़ी तो सरकार नियमों में भी संशोधन करेगी। शुरुआत में इस डिवाइस को आफ्टर मार्केट लगाया जाएगा, बाद में ऑटो कंपनियों को ही इसे लगाने के लिए कहा जाएगा।
सटीकता पर सवाल =>हालांकि कई देशों में इस तकनीक को पहले से इस्तेमाल किया जा रहा है और वहां ड्रंकन ड्राइविंग से होने वाले हादसों में काफी कमी देखी गई है। लेकिन वहां भी इस डिवाइस की सटीकता पर सवाल उठाए गए हैं। 2017 में अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रीवेंटिंव मेडिसिन में छपी एक स्टडी के मुताबिक इन डिवाइसेज की रीडिंग सटीक नहीं होती है और इनकी कीमत और लगाने का खर्च काफी ज्यादा है। वहीं ये डिवाइसेज लगने के बाद वहां मुकदमे काफी संख्या में बढ़ गए, क्योंकि लोगों ने निजता के अधिकार के उल्लंघन का हवाला दिया।

 

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