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वोटिंग से पहले देखिए किसे- क्यों फायदा…कौन नुकसान में

सुजानगढ़ में किसानों के मुद्दे पर NDA से अलग हो चुकी RLP ने BJP के समीकरण बिगाड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि सुजानगढ़ सीट पर वोट काटने का जो काम निर्दलीय प्रत्याशी संतोष मेघवाल कर गईं थीं, अब वही काम RLP कैंडिटेट सीताराम नायक करना चाहते हैं। कांग्रेस
वोटिंग से पहले देखिए किसे- क्यों फायदा…कौन नुकसान में

सुजानगढ़ में किसानों के मुद्दे पर NDA से अलग हो चुकी RLP ने BJP के समीकरण बिगाड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि सुजानगढ़ सीट पर वोट काटने का जो काम निर्दलीय प्रत्याशी संतोष मेघवाल कर गईं थीं, अब वही काम RLP कैंडिटेट सीताराम नायक करना चाहते हैं। कांग्रेस इस ‘वोटकटवा’ समीकरण का फायदा उठाने में जुट गई है।

भाजपा उम्मीदवार और पूर्व मंत्री खेमाराम मेघवाल के अनुभव का सामना दिवंगत मास्टर भंवरलाल मेघवाल के बेटे मनोज सिम्पैथी कार्ड के जरिए कर रहे हैं। 44 साल के मनोज B.Sc. तक पढ़े हैं और बिजनेसमैन होने के बावजूद पर्दे के पीछे से पिता के राजनीतिक फैसलों में भी दखल रखते थे। वह सुजानगढ़ भले न आते हों लेकिन रणनीतिक जमावट से अनजान नहीं थे।

55 साल के खेमाराम मेघवाल भाजपा सरकार में खनिज राज्य मंत्री रह चुके हैं। उन्हें पांचवीं बार टिकट मिली हैं। दो बार जीतने वाले खेमाराम को राजनीति में 30 बरस का अनुभव हैं। भितरघात का सामना कर रहे खेमाराम ने वोट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो को आगे कर दिया है।
चुनाव 2018 : कांग्रेस से मास्टर भंवरलाल मेघवाल और भाजपा से खेमाराम मेघवाल लड़े। भाजपा 38 हजार 749 वोट से हार गई। त्रिकोणीय मुकाबला था और जितने वोट से खेमाराम हारे, उतने वोट उस वक्त निर्दलीय प्रत्याशी संतोष मेघवाल ले गई थीं। वही संतोष अब बीदासर पंचायत समिति की भाजपा की प्रधान हैं।
उपचुनाव 2021 : मास्टर भंवरलाल मेघवाल के बेटे मनोज कांग्रेस प्रत्याशी हैं। सामना खेमाराम मेघवाल से ही है। निर्दलीय प्रत्याशी की जगह इस बार RLP से सीताराम नायक उतरे हुए हैं। 65 साल के नायक पांचवीं तक पढ़े-लिखे हैं। दो बार चुनाव लड़ चुके हैं। RLP सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने BJP का जातिगत समीकरण बिगाड़ने की रणनीति बनाई है। हनुमान बेनीवाल खुद ही 35 से ज्यादा गांवों में रैलियां कर चुके हैं।

2. सहाड़ा का अखाड़ा : ‘लाल’ से भाजपा फिर निढाल; बागी लादूलाल लौटे तो RLP के बद्रीलाल बने चुनौती
सहाड़ा के उपचुनाव में नाम वापस ले चुके लादूलाल पितलिया के बाद सबसे बड़ा फैक्टर RLP बनेगी। RLP ने दो काम किए हैं। उसने जाट बहुल सीट पर बद्रीलाल जाट को प्रत्याशी बनाया है जो कि पिछले चुनाव में BJP प्रत्याशी रहे रूपलाल के भाई भी हैं। संकेत साफ है कि RLP यहां BJP के मौजूदा प्रत्याशी डॉ. रतनलाल जाट के समीकरण बिगाड़ने के लिए ही मैदान में उतरी है। पार्टी को उम्मीद थी कि लादूलाल की नाम वापसी के बाद समीकरण बदल जाएंगे।
भाजपा के प्रत्याशी डॉ. रतनलाल जाट खुद कोरोना संक्रमित हो गए हैं और जयपुर अस्पताल से ही VIDEO जारी करके समर्थकों का हौसला बढ़ा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी डाॅ. रतनलाल जाट का अपना अनुभव और सादगी है। कांग्रेस प्रत्याशी गायत्री देवी सिम्पैथी वोट के लिए कैलाश त्रिवेदी के कामों को गिना रही हैं। भावुक कर देने वाली बातें वोट में बदलने की कोशिश कर रही हैं। इस बीच लादूलाल पितलिया ने टाइट सिक्योरिटी के बीच नौ दिन क्वारैंटाइन में गुजारे। बुधवार को निकले तो सीधे भाजपा नेताओं से मिलने पहुंच गए। उनकी इस मुलाकात ने सहाड़ा में नई सियासी हवा घोल दी है।
3. राजसमंद : निकाय चुनाव की हार भुलाकर दीप्ति ने गांवों में ढूंढ़ निकाली उम्मीद की ‘किरण’
सियासत की विरासत संभालने उतरीं दीप्ति माहेश्वरी की चुनावी राह को ‘सिम्पैथी कार्ड’ ने आसान बना दिया है। मां किरण माहेश्वरी के नाम और गांवों में किए गए काम के जरिए वे वोटर्स तक पहुंच गईं। संगठन में नाराज लोगों को भी एक हद तक मना लिया। हाल ही में हुए राजसमंद निकाय के चुनाव में भाजपा जिस तरह हारी, उससे शुरुआत में उन्हें मुश्किल का सामना कर पड़ रहा था। उनके सामने कांग्रेस के केलवा के मार्बल व्यापारी तनसुख बोहरा चुनाव मैदान में हैं जो सरकार और संगठन के भराेसे हैं। नया चेहरा होने से उन्हें पैठ बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी है। भाजपा नेताओं के बिगड़े बोल से दीप्ति को यदि बड़ा नुकसान नहीं हुआ तो कांग्रेस को मुकाबले के लिए पसीना बहाना पड़ेगा।
राजसमंद भाजपा की परंपरागत सीट है और गांव-गांव तक किरण माहेश्वरी की पैठ को चुनावी वोट में बदलने में दीप्ति कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। वह मां की तरह गांवों में प्रचार के लिए पहुंचीं। इसके उलट तनसुख बोहरा को गांवों में पहचान का संकट है। कांग्रेस को शहरी वोटर्स से खासी उम्मीद है क्योंकि यहां हाल ही में पार्टी का बोर्ड बना है। 2021 के पहले तक BJP का कब्जा था लेकिन 26 साल बाद कांग्रेस काबिज हुई।

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