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प्रतापगढ़:..और मुंबई से लेकर चल पड़े अपना ऑटो रिक्शा

रोजी-रोटी के लिए घर बार छोड़ा, परिवार छोड़ा। साल दर साल मुंबई में बिताए, लेकिन कोरोना ने ऐसी आफत खड़ी कर दी कि मुंबई से चले आना पड़ा। इससे रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। मुंबई समेत महानगरों से लौटने वाले प्रवासियों को कई तरह की मुश्किलें हो रही हैं।फतनपुर क्षेत्र के तुलैया का पूरा
प्रतापगढ़:..और मुंबई से लेकर चल पड़े अपना ऑटो रिक्शा

रोजी-रोटी के लिए घर बार छोड़ा, परिवार छोड़ा। साल दर साल मुंबई में बिताए, लेकिन कोरोना ने ऐसी आफत खड़ी कर दी कि मुंबई से चले आना पड़ा। इससे रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। मुंबई समेत महानगरों से लौटने वाले प्रवासियों को कई तरह की मुश्किलें हो रही हैं।फतनपुर क्षेत्र के तुलैया का पूरा मेडुआडीह गांव के रहने वाले धनराज यादव 1998 में मुंबई गए। किराए पर ऑटो रिक्शा चलाने लगे। बाद में पुराना खरीद लिया। अपने परिवार की रोजी-रोटी का सहारा बने। अब कोरोना संकट ने उनसे यह सहारा भी छीन लिया। मुंबई में इस साल जब कोरोना फिर से रफ्तार पकड़ने लगा तो लाकडाउन लग या। जिदगी ठहर सी गई। ऐसे में वह क्या करते, ऑटो लेकर घर की ओर निकल पड़े । साथ में पड़ोस के ही धर्मराज यादव ,हरि प्रताप यादव ,महेंद्र यादव भी निकल पड़े। यह लोग भी मुंबई में ऑटो रिक्शा चलाकर अपने परिवार को पाल रहे थे। बुधवार को धनराज सुरवामिश्रपुर आयुर्वेदिक अस्पताल में अपनी बीमार पत्नी संगीता देवी का इलाज कराने आए थे। जागरण से बातचीत में कहा कि हर दिन वहां करीब 1200 रुपये कमाते थे। बाद में सौ-दो सौ मिलना मुश्किल हो गया। ऐसे में क्या करते, गांव की ओर निकल पड़े । यहां आए तो लॉकडाउन से सब ठहरा सा मिला। शहर बदला, पर सूरत नहीं बदली।
धनराज बाते करते-करते खो से जाते हैं। कहते हैं कि मुंबई नगरी ने बहुत कुछ दिया। गुजर तो वहीं होगी। बस इंतजार उस दिन का है कि जब कोरोना का अंधेरा दूर होगा। सब ठीक हो जाएगा तो ऑटो लेकर फिर उसी नगरिया को कूच कर जाएंगे। आखिर दोनों बच्चों विकास व आकाश की पढ़ाई का भी तो सवाल है।

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